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दीयो, सीयाळारो ताप, जका जसा घणा जुग जीवौ । हरषरौ हीडो, उदेगरी भेट, जीवरो जतन, इन्द्ररी भेट । किस्तूरीरो माफौ, केसररी क्यारी, रूपरो रूषड़ो, रच (स) ना होनारी। भमरांरो भणणांट, डीलारी दोली, दीपमाळारा दौर, भाषररी होळी । गुलाल सही गढ़ी, आषांरी पाणी, होरांरो हार । ग्रहणांको भललाटौ, तजको अंबार, जसीयांको जीवणो वा संसार को सार । दांतारो पाणी, कड़ीयांरो केहरो, हालरो हंस, भूरी भमर, कुरजरी नस । अलकारी नागण, पलकारी कुरंग, कंठारी कोयल, सोनेरी अंग । अणीयाळां नैणांमें काजळकी रेषां, अमरतरा ठांसा चंदामें पेषौ । सोंदूर की बींदो भालूमें भळकै, काळीसी कांठळमें चंदो कन चळकै । असोभतां ऊतारे, सोभतां धारे । वाल वाल मोताहल पोया, जांणे नवलाष नषत्र एकठा होया । बाजणां जांझर पैराया, घूघरांका सुर गैरीया। अण भांतकी जसीयां, जकाक चो(छो)डो चौ (छो) रसीया। मांणोनी म्यारांम जी, थांन दीनी छै रामजी। लो नी लाडीका लावा, पीचै (छै) करसौ पच(छ) तावा । जावणकी वातां जांणां छां, मतवाळी कुं नहीं माणां छां। वरसाळाका वादळ ज्यूं ढाळका जल ज्यू, भाषरका पांणी ज्यू, वाटका वांणो ज्यू, चे(छ)ह मती चा (छा) डौ, थोड़ी सो मन करो गाडौ । झाली वागां षड़ो, थोड़ा रही झलीया । पिण थांमै किसो दोस, थां के संगी पलीया ।"
बहत ही साधारण स्थिति के नायक को लेकर लेखक ने इसे ऋषि का अवतार और जसां को इंद्राणी का अवतार बताया है तथा उनकी साज-सज्जा और ऐश्वर्य का वर्णन भी बहुत ऊंचे दर्जे का चित्रित किया है, जिससे उसका अत्युक्तिपूर्ण वर्णन उस समय के साहित्यकारों को भाया नहीं, इसलिए बात की सुन्दरता को स्वीकार करते हुए भी नायक के औचित्य का किसी कवि ने व्यंग्यात्मक ढंग से उपहास किया है :
दर्जी कौड़ी दोढ़ रो, बणी लाख री वात । हाथी री पाखर हुती, दी गधे पर घात ।
राजा चंद प्रेमलालछी री वात कथा-सारांश
राजपुर गांव में रुद्रदेव नामक एक राजपूत रहता था । उसके दो औरतें थी दोनों ही मंत्रसिद्धि में निष्णात थीं, परन्तु पति इससे अनभिज्ञ था। एक बार जब दोनों औरतें पानी भरने जाने लगी तो छोटी ने रुद्रदेव से कहा-मेरा लड़का पालने में सो रहा है सो तुम उसका ख्याल रखना । बड़ी बहू ने कहा
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