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दूसरे किसी खुबसूरत प्रादमी को फिलहाल दूल्हा बना कर भेज दिया जाय श्रीर शादी के बाद में लड़की को अपने ही ले जायेंगे । संयोग से दूल्हा बनने के लिये में ही उन्हें मिला । जब में तोरण पर पहुंचा तो मेरी पटरानी ने मुझे पहचान लिया ।
मैंने शादी के समय तांबूल से दुलहन की चूनड़ी पर यह दूहा लिखा
प्रभो नगरी चंद राजा, गिर नगरी प्रेमलालछी । संजोगे - संजोग परणिया, मेळो दैव रे हाथ ॥
वहां से मैं उसी रात अपनी नगरी तो पहुंच गया परन्तु सास-बहू ने मिल कर मुझे सुग्गा बना दिया । दिन भर पिंजरे में बंद रहता और रात को पुन: चंद
बन जाता ।
उधर कुरूप पतिदेव प्रेमलालछी के रंगमहलों में सुहाग-रात मनाने पहुंचे तो उनकी बड़ी दुर्गति हुई । बरात बिना दुलहिन के वापिस पहुंची। प्रेमलालछी बड़ी दुःखित रहने लगी। परन्तु जब एक वर्ष बाद सावण की तीज के दिन उसने अपने विवाह के कपड़े पहने तो चुनड़ी की कोर पर लिखा हुआ दोहा उसके ध्यान में आया। उसने सारी बात का अनुमान लगाकर अपने पिता से सहायता ली और मेरी नगरी में श्रा पहुंची। उसकी चतुर दासियों ने अपनी जासूसी के द्वारा मेरा हाल चाल मालूम कर लिया और एक दिन दावत के बहाने जब वह स्वयं महलों को देखने ऊपर पहुंची तो उसकी एक चतुर दासी ने मेरे पिंजरे के स्थान पर तोते सहित दूसरा पिंजरा आले में रख दिया और मुझे वहां से मुक्ति दिलाई। सास-बहू ने शाम को जब सुग्गे को संभाला तो सुग्गा दूसरा था । अतः वे चीलें बनकर मेरी प्रांखें फोड़ने को डेरे पर आई, उस . समय मैंने तीर से उन दोनों को मार गिराया ।"
अपना अनुभव सुनाने के बाद चंद ने रुद्रदेव से कहा कि त्रिया चरित्र का कोई पार नहीं होता है परन्तु मैंने तुमको प्रेमलालछी की पुत्री ब्याही है । वह तुम्हारा कभी बुरा नहीं चाहेगी । इसलिये तुम आश्वस्त रहो ।
कथा - वैशिष्ट्य
इस बात की कथा - वस्तु पूर्णतः त्रिया चरित्र पर ही आधारित है । छोटीसी बात में अनेक स्त्रियों के चरित्र का उल्लेख हुआ है । राजा रिसालू की बात में भी स्त्रियों के कुटिल चरित्रों पर प्रकाश डाला गया है । परन्तु इन दोनों कथाओं के निर्माण व घटनाक्रम में बड़ा अन्तर है । रिसालू की वार्ता में प्रत्येक
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