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________________ [ ३६ ] नारी पात्र के जीवन की पृष्ठभूमि बांधने का प्रयत्न किया गया है जिससे उन नारी पात्रों के चरित्र में उत्पन्न होने वाले यौन विकारों का मनोवैज्ञानिक अध्ययन किसी हद तक संभव हो सकता है । इस कहानी में जादू-टोने व मंत्रसिद्धियों के आधार पर अनहोनी घटनाओंों को घटित कराते हुये नारी की योनपिपासा के फलस्वरूप उत्पन्न होने वाली अनेकानेक घटनायें वर्णित हैं । जादू-टोने का सहारा लेने के कारण कथा में किसी भी नारी पात्र का चारित्रिक विकास नहीं हो पाया है, जिससे कहानी केवल काल्पनिक स्तर पर ही न रह कर तिलस्मी बन गई है । इस कहानी को पढ़ने से सामाजिक तथ्यों की ओर हमारा ध्यान अवश्य ही आकर्षित होता है । कथाकार ने रुद्रदेव जैसे साधारण नायक से बात प्रारंभ कर के चंद राजा और उसके परिवार पर कथा को समाप्त किया है । अतः निम्न स्तर के समाज से लेकर राज्य-परिवार तक में व्याप्त दुष्चरित्रता तथा यौन कुण्ठानों पर करारा व्यंग हमें देखने को मिलता है । इसके अतिरिक्त यह बताया गया है कि एक ओर नारी को स्वयंवर के माध्यम से अपना पति चुनने का पूर्ण अधिकार है तो वहां किसी सुन्दरी को छल के साथ प्राप्त करने के लिए असली दूल्हे के स्थान पर दूसरे दूल्हे को तोरण पर भेज दिया जाता है क्यों कि असली दूल्हा कुरूप था। इस प्रकार जहां एक ओर नारी की बड़ी दीन स्थिति बताई गई है, वहां दूसरी ओर पुरुष उसके सामने बड़ा निरीह चित्रित किया गया है । क्यों कि वे अपनी चतुराई तथा काम पिपासा में उन्मत्त पुरुषों के विभ्रम के कारण उन पर शासन ही नहीं करतीं अपितु उनको मूर्ख और अपनी लालसाओं का खिलौना तक बना देती है । लेखक ने जहां एक ओर दुष्चरित्रता का पूरा वर्णन किया है वहां दन्तकथा की मुख्य नायिका प्रेमलालछी के चरित्र को निष्कलंक बताया है तथा उसकी चतुराई का भी बड़ा बखान किया है । कथाकार ने मनुष्य के भाग्य को सर्वत्र प्रधानता दी है परन्तु दुष्चरित्रता में लिप्त पात्रों का अन्त भी बुरा बताया है। अतः कथा का वास्तविक उद्देश्य दुष्चरित्रता के दुष्परिणामों की ओर इंगित करना कहा जा सकता है । भाषा-शैली पूरी कथा गद्य के माध्यम से ही कही गई है जिसमें केवल एक दोहे का प्रयोग मिलता है। जहां तक कथा की भाषा का प्रश्न है वहां सरल, प्रसाद-गुण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003392
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshminarayan Dixit
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1966
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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