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________________ बात बगसीरामजी प्रोहित होरांकी रावका रजपूतका बचन दौहा- हक मल हल हुकल, धुरै नगारां घावै । गढ उदयापुरपै गवैण, रचै बाहदर राव ।। २४७ छप्पै- रचे बाहादर रावै गवणत्र वाट गरज्ये , ___ चढे कटक थट चल करण भारत स कज्ये । अड़ा भीड़ प्रावधां करी बगतरां षणकत , बेग भ्रगाटां बहत भिड़ ज फोरणाट भणकत ॥ ससत्र हजारां सु लिये, भला सजन मन भाबियो , सीवांणीपति सूरमों येम उदेपुर प्रावियो । २४८ दौहा- हलकारां मालूमै करी, प्रोहित सुणी प्रचंड । सात बीस सुभटां सहत, आयौ रावै अषंड ।। २४६ सुभटां थट सनमुष मले, प्रोहित कर अतप्रीत । रावै भला आयौ किधूं, राषण पणबृत रोत ॥ २५० २७. बारता- प्रोहित कहै छै-रावत भलां प्रायो, मोयर चाकरीरो हुकम दीज्ये । राव बचन रावै कहै छै- या चाकरी सहरै बारै गवर छै, बंधा पकड़ज्ये । प्रोहित बचन राव ठीक फूरमांइ, मेवाड़ा नै तरवारयां मार बंधा पकड़ लेस्यां। लाषां बातां चूकस्यां नहीं। रांणां भीमको ऊदैपुर तिणकी आबरू पाड़ घोड़ा ताता षड़स्यां । लारै बरां पूगसी तो वांसुं भी फूलधारा लस्यां । रावर बचन प्रोहित घणा रंग छै। आप जमाषात्रे कीजै। झगडाको काम पड़ियां म्हांकी भी हाजरी लीजै । यण प्रकार प्रोहितकै, रावै बाहादरकै बतलावण हुई। राव बाहादर चोगांनमैं डेरा दीना । प्रोहित प्रापिणी सहलियां बाड़ी छोड बाहर डेरा कोनां। चाकर घोड़ा बांधबा वास्ते मेषांपर मेषचा बजावै छै, अगाड़ी-पछाड़ी घोड़ा अटकावै छै । दोमुंही सिरदारांकी बछायेत, जाजिम चांदण्यां छटक रही छै। रसोईदार रसोईकी संजत कीनी छै। नैम स्यांमके बषत रजपूतांको मुजरो मोहलै लीनो छ । त्यूक आयौ। हीरां लषियो-राणां भीमकै, आपकै नोंष-चोष हूई छै। राज्य ! हूँ तो अब हूकमकी चाकर छु । आप मोनै कांई फरमावो छौ ? होरा कागदमैं समाचार साथै चालबा का लषिया, प्रोहित परषिया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003392
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshminarayan Dixit
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1966
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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