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बात बगसीरामजी मोहित होरांकी दोहा- हुतो चाकर हूकमकी, दुषी घणी डूं दीन ।
लारै मोनै लेवज्यो, आप तणी आधीन ॥ २५१ धन जोबनका थे धणी, तन मन अरपं तोय ।। साथि लोज्यौ बालिमां, मति बीसरज्यो मोय ।। २५२ अरज लिषी छै बालिमां, मानज्यौ मेरी ह । साथि चालुं साहिबा, चरणांकी चेरी ह ॥ २५३ प्रोहित ममत पछाणियो, जोड़ी हंदो जोये ।
मत बीसरज्यौ बालमां, मर जाऊंलो मोये ॥ २५४ छप्प- मरत नीर बिन मीन आप बिन मो दुष ऐसौ ।
बच्छ बना बेलड़ी कहो अवलंबन कैसौ ॥ रसिया प्रोहित रांण लोयेणां अंति हित लागै , रहस्युं दासी रीत आपकी रांणी प्रागै ।। परगट मोन पकड़ज्यौ, कर लीज्यौ तन बध कस , बामि (लि)म मति बीसरज्यो, आप बना मरस्यूं अवस । २५५ प्रोहित लषियो प्रगट आज तीजां आडंबर , साघ(ध)ण कांमण सुषद अंग आभूषण अंबर । तोजां ऊंछव तांम गावै त्रिय मंगल गासी , पहर बषत पाछैलै आज पीछौलै पासी ॥ उण बषत आप सज प्रावैज्यौ, प्यारी वीरू घाट पर, प्रगट तोने पकड़स्यां, ये बातां राषण अमर ।। २५६ कर गवण केसरी चलत मंन बात हरष चित , बणियांणी उर धार ऊमग आई सनमुष अत । हीरां पुछत हरष कहो कैसी किम कीजै , कह्यौ अब केसरी किनक संगार करीजै ॥ बीरू घाट कीनो बचन, मो तो येकण संग मिल , प्यारी साथ पधारस्यां, अबलाषा पूरण असिल ।। २५७ हीरां मनमैं अति हरष बिवध पोसाष बनाई , तीज पहर तीसरै ऊमंग पीछौले आई। बीरू घाट बसेष केसरी संघ(ध) कहावत , प्यारी चाहत पीव षूटकन है जेज षटावत ॥ अछ उडीकंत प्रातूरी, अतचंचल जोवत गढी , प्रोहित प्राजि न पेषियो, तन तालाबेली चढी ।। २५८
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