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बात बगसीरांमजी मोहित हीरांकी छै। म्हाकै र ऊकै बचन गाढौ घणौ छै। ऊमै काम पड़यां तो हजाऊ, मैमै काम पड़यां वो पावै । लाषां बातां रहै नही, ऊ ईसोईज छै । ऊधारा झगडाको लेबा वालो छ । भारथको भीम, सूरमाको सीम । केबियांको काल, नगी किरमाल । नेक बषत तमाण, देषते षबरियांण । जाक समसेर दसु देख संका, पाधरां सु पधरा, बंकासुं त्रिबंका। झगड़ेकी अरदास्त, सस्वका अभ्यासत । प्राक्रमका प्रथीराज, बुधिका समाज । सोरका जोर कवारी घड़ारां यारुका यार । आड़ ते आडा, ऐसे नागर सिवाणी बज्रकी ढाल, जैजै रावै बाहाद्र षलुका नाटसाल । दोहा- कटक बिकट घण थट कियां, घोड़ा घमसांणीह।
राव बाहादुर राजबी, सुर ईंद्र सिवांणींह ।। २४५ राव बाहाद्र सुभट रंग, बाच घण बाषाण ।। पर घट लै सीस पर, है झैले अस प्रांण ।। २४६ २६. वारता-यू राव बाहादरनै कागद लषीजै, हलकारानै बदा कीजै । प्रोहित राणांक ऊदैपुरमै नोष-चोष हुई, जिण बातको कागद सिवाणीने लष दीनौ, गीरधारी हलकारानै बदा कीनो। प्रोहितनैं सिवलाल कहै छै – अब तो गिरधारी हलकारो बाटां बहै छै । सो अठै ऊदैपुर आये राणां झगड़ा ऊपर आसी। लाषां बातां टलै नही । अगजीत षांगा बजासी । अब गिरधारी हलकारो सिवाणो गयो छ । प्रोहितको कागद रावनै दीयौ छ। राव कागद बांच परगहैनै सुंणायो छै ।
परगह बचन परगहै कहै छै बड़ो अवैसांण आयौ, रावने सूरवीर जांण कागद पढायौ।
राव बचन लाषां बातां ऊदैपुर गया राहांला, मेवाड़ांका रजपुतां सु फूल धारा षेलाला। कैतो मेंवाड़ांनै चापड़े षेत मारलेस्यां, जै आपां मरस्यां तो प्रोहितजीकै अवसांण अपठ्ठरा बरस्यां । यू बात करतां दिन असतंग हुवौ । राति बृतीतमान हुई। सूरजको प्रकासमांन हुवौ। रावै कटकनै कहै छ -- ठाकुरा, जेज न कीज्ये, ऊदैपुर दूर छै मनमैं विचार लीज्ये । बलां धोकलां करीजै, घोड़ा काठी धरी लीज्ये । तब सारै साथ बणां कर लीनी। चरवादार घोड़ा काठी धर लीनी। इतै नगारची नगारै चोभ दीनी और कटकानै तो कोट तालकै कीना, सात बीसी पायर हित साथ लीना । घोड़ाकै तो सछी पाषर अवारकै बगतर, टोप, झिलम जरै च्यार अांनी दस्ताना चलित, इतरा समाजको सिलै सरब असबारांकी पा, राव चढयौ । रावका रजपूत कैसा ? वैता कालकी चालकुं पकड़े ऐसा । रावका रजपूत, जंगमैं मजबूत, प्रावधाम कड़ा जुड़, अडाभीड़का अोनांड़, पलांका बिभाड़, नाहरां पछाड़।
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