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बात बगसीरामजी प्रोहित होरांकी
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रांणा बचन छित्रीबंसमै म्हाकै छ चक्रच (व)रती हूवा, जिका प्रथवी जीत लीनी।
प्रोहित बचन माहाका बंसमै श्रीपरसरांमजी हुवा, जिका ईकईस बार प्रथी नछत्री कीनी । बगसीरांमका वचन सुण रांग भीम रोस कीनो, मनमैं अहंकार प्रांण यो जबाब दीनो।
राणा बचन दोहा- क्रोध कर रांणो कह्यौ, दल बल लेऊंगा देष ।
ऊदय्यापुर बंधा अवस, पकड़ी जो हद पेष ।। - प्रोहित बचन प्रोहित बोल्यो दिल प्रघल, आप जतन बांधो दीवाण । ऊदय्यापुरकी बाधु अवस, पकड़ पकडूंलो प्रमाण ॥ २३८ रतनांवत दिल रोसमैं, प्रोहित चले पयांण । बचन बचन बांधी बिथा, जग्यौ अग्नि घ्रत जाण ।। २३६ चले प्रोहत नाव चढ़ि, ध्यावत क्रोध अधीर ।
सुभट सजोरा संगमें, बाड़ी आयो बीर ।। २४० छप्पै- चढे रीस चष चोल मुंछ मिल भ्रगट भ्रमांवत,
अषाड़े पर प्राय जाणें जोगेन्द्र जगावत ।। कोप्यौ भीम कराल कनां जमजाल क्रोधकस, जगी सो(से)र ढिग ज्वाल इण बिध प्रोहित उसस । क्रोड़ बात नही चूकस्यू, सुणलीजो सांची सुभट, ऊदयापुर बंधा अवस, पकड़ाला भुजबल प्रगट ॥ २४१
_राजपुतां बचन दोहा- प्रोहित रांण प्रचंडका, सुभट बोल यक संग ।
बंध पकड़स्यां बीरबर, जुटस्यां षांगा जंग ।। २४२ कर जोड़ी सुभटां कह्यौ, आज असाढ अभंग। सावण स लेस्यां सही, तीजां चाढ तुरंग ।। २४३ भली बात प्रोहित भरण, तीज तण विवार । पकड़ांला बंधा प्रगट, सब देषत संसार ।। २४४ २५. बारता- इतनै प्रोहितजोन सिवलाल धाभाई कहै छ – आज तो तीजां पाड़ा पचीस दन कहै छै । माहाकी आ अरज छै – सिवांणी गावै छै । वो हूँ पाधड़ीबदल भाई छा । काम पड़यां मेहे(म्हे), वै जावां आवां छा । सो बड़ो धाड़वी
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