________________
बात बगसीरांमजी प्रोहित होरांकी दाषे हूकम दीवान बगसरांम बुलायेहु, मन मानत मिलाय जेज नै बेगा जाय हूँ । जब पीछोला ऊपरें, चोपदार नावक चले, बिबध सहैली बाडियां, माहाबीर प्रोहीत मिलै ।। २३३ चोपदार सुण बचन प्रोहित ऊसस, सज पुनीत पोसाष किनक संनाह भलकस । ढाल षस षडगबंध कट खूब सुभट थट प्रावध संगम, भीमराण मेटवा तामस चढ चले तुरंगम ।। मालम अषंड नवषंड मय, अनमी धिर प्रचंड अत,
मारतंड भल हरत मुष प्रलंब भुज डंडवत ।। २३४ दोहा- प्रोहित अब चाल्यौ प्रगट, सुभट लियां षण स्यंघ ।
बीर घाट प्रापत भये, अतबल बीर अभंग ।। २३५ चाले नाव जिहाज चढ़. परघ संग प्रचंड । जगमंदर आयौ जबै, अनमी मगज अषंड ।। २३६ दरगहै राणा की दरस, अनमी प्रोहित अंग । मांनु जुथ गयंदमै, आयो स्यंग अभंग ॥ २३७ २४. बारता- यण प्रकार राणाकी दरगामैं सुभट समाजसुं प्रोहित पायौ । जिण प्रकार सुण्यौ तिण प्रकार दरसायो। तबै राणै प्रोहितनुं नमसकार कीनो, तबै प्रोहित राम राम कीनो । तब राण रोस कीनो - बासरीवाद कुं न दीनों।
प्रोहित वचन बात- प्रोहित कहै छै--अनमी डूं, रूघबंस बना ओर नरवर बना नमुं नहीं। आपका सीस पर षेलं, औरनै हाथ मांडू नही ।
राणा बचन तब राणो कहै छै - अनमी पणों तो माहानै चाहिज्ये। यूं आप ब्राह्मण छौ, · प्राप. क्यूं ?
प्रोहित बचन आप जांरण सो ब्राह्मण नहीं । जोध विद्याको साधिक, ईसटको आराधिक छ, सही।
राणा बचन जोधबद्या छित्रीबंसमैं छै, जिका महाभारथमै करवां पांडवां दिषाई।
प्रोहित बचन माहाका बंसमैं द्रोणाचार्यंजी हवा, जिका वा बनां वा. किण पढाई ?
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org