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बात वगसीरांमजी प्रीहित होरांकी
ऊपडंत बाग हैमर अपार, धजकंत कढी त [र]वार धार ॥ बलियो षांडो इम बहुत बार, कर बीज मनु घण चमटकार । मुष मार ललकार मंड, प्रकार भले प्रोहित प्रचंड || ईतरमै संसिरबाहू अमांम, राजंत प्रोहित फरसरांम । चहूवांण देव झाला सुचित, ईत राव बाहादर यंद्रजीत ॥ मिल राव प्रोहितं जुग संमेर, घण थाट सुरंगम सुभट घेर । चालंत बांगा दहूंगा प्रचंड, रण धार बीर कटै रुंड मंड ॥ बिछड़त सीस घावन बिघाटै, फरसी के अग्र तरबूज फाटै । ऊछलत भेजी मगज येम, तरलंत दहडी फाटैत एम || कुटंत सीस तरवार तंग, साहमीं के रंग छूटयो प्रसंग | घरण तुट भूजा तरवार घावै, वण राये साष पड़ बीज भावै ॥ छाती पर बरछी बहैत छेक, किचकार धार छबि र पेष । दोहू तरफ बगतर फोड दीन, मानुं तुछ कढयौ जलधार मीन ॥ तन फोड़ कारीय यार तंस, बय फोड़ि सिला ऊकसंत बंस । किरमाल धार हेमर कटंत, मनु प्रान हौय मिल घर बदंत ॥ धण षाग जोध पछड़ंत धावै, भभकंत रैत्र परंनाल भावै । जोगणी पत्र भरत्र जेम, अथांण दुहारी दूध एम ॥ मिल स्यंभु केलंत रुंडमाल, बंगु षेलंत लेवंत बाल । जोगणी वीर नाचंत जेम, अदभूत कांन गोपंग येम ॥ मिल बीर कहैत मुष मार मार, नाचत हरष नारद निहार । भूझार मरत किरमाल जंग, अपछरा माल पहरंत अंग || मानंत विवांण चढ प्राण पेष, लेषंत गवण कर यंदु लोक । झड़पड़त गिगन मग ग्रीध झुंड, मुष लेवत गुद पल रुंड मुंड || झड़पड़त घाव रत कीच भीन, मनुं त (तु) छ नीर तड़फड़त मीन । यक पोहर बजी केवांण भांरग, भारथ देष थंभ्यो क भांन ॥ अदभुत जंग मंडयौ ऊषेल, बड़ पड़े षेत चहूवांण भेल । काला पड़िया घण घेत जंघ, अब जीत्यो प्रोहित बल अभंघ ।। २६८ ई राव बाहादर बड़ी रीत, जोधार षड्यौ यण रंग जीत ।
छप्पे - रण केते नर रहे जिते भड़ सनमुष जुंटे,
चढ झाला चहूं वांण फूलधारां तन फूटे । चम घाट चीर विषम षग भाट बजाडे, कायल भागे केते अवर घायल ऊ बारे ॥
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