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बात बगसीरामजी प्रोहित हीरांकी
तन भीड कडी र बगत्तर यूं करबार बाहादर राव किधूं ॥ कर जोप जग्यौ सिवनेत्र किधूं, भिड भीड भुवा रंन ऊभ रयूं । गण देषत चंडै (ड) गत (तै, तं) थन यूं, मा (म) नु कोप तै झुंड मयंदन यूं ॥ प्रति क्रोध बी (बि) रोध म अंगम यूं, जबरायल जग्यौ क भुजंगम यूँ । बधु (धू) धल जोग विकट ( टू ) ण यूं,
परकोप उलट (ट्ट)ण पट ( टू ) र यूं ॥
यम राव बाहादर कोपित तै, मिल सु ( सू ) र समागम युध (द्ध) मतै । तब ऊपडे (ड़) बाग तुरंगनकी, घर हेमल योर धमंकत यूं ॥
मिल पाषर होट ठमंकत यूं रण रोष चढे मुष सूरंन के । नर भीत दिनंकर नूरंन के, चष जोल सुरंग चमंकत यूं ॥ दरसंत क आग द्रमंकत यूं
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मिल राव बाहादर जोध मिल (ले), भिड भारथ में तरवारि भले ।। २६६ ३०. बात - ईण तरै महाभारथको झगड़ो जुड्यौ झगड़ाको भार सारो राव ऊपर पडयौ | अठ्याव को परधांन ममदयारषां षेत पड़यौ ।
अथ महमदय्यारषांको गीत
बागी धमचाल कटक दोहू ऐ वैल कढि किरमाल कराली, प्रलैकाल भिलो उण पुलमै किलम तुरंगत काली । वाज प्रटं कुझ वलोबल बीजल बाग बिलगे, राव त प्रधान प्रघल रंण भेडंता षल दल भगे ॥ जुड़ घमसांण ग्रीधणी जोवण बीर बषांण बजाडी, रंग पठाण मेवाड़ पर रूठो बिढ (ठ) के वांण बिभाडी । पिसणां घणां तणा मद पाड़े पतद लोहां पूरां,
पूगौ महमदषां ऊच पद बरेगो हूरां ।। २६७
श्रथ प्रोहित जुध बरणन
छंद जाते पधरी - कोप्यो क श्रबै प्रोहित कराल, जग्यो क सोर ढिग अगन ज्वाल । छुट्यो क बांन असमान छोहै, टूटयों क घोष षण बीज तो है || जग्यौ क मांनुं योगेंद्र जोत, दग्यौ क तोप गौला उदोत । रूठ्यौ क भीम चढे जंग रीस, फूटयों के सिध जल धार कीस || जोयक जग सुग्रीव जोध, कौप्यो क अंगहन हनुवंत क्रोध । फूंकार सेस पुछटचौ फूणद्र, बिछट्यौ क सिव जटा बीर भद्र ॥ यण भांति प्रोहित कोप अंग, जबरायल सुभट मिल संग जंग ।
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