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बात रीसालूरी दहा-षट रीत भोगी भमर ज्यू, वीलस्यै राय विलास वै।
माणीगर मोजां दीये, सहुको पूरै पास वै ।। ६
२. वारता-हिवै सूष-विलास करता घणा दीवस हुवा। राजारै पीण पूत्र नहीं ] [ तीणैरो घणो सोच हुवौ। घणा देवी-देवता मानै छै, षटु दरसणनै पोषै छै, छतीस पाषंड, चोरासी चेटक घणा दाय-उपाय करै छै । पीरण पूत्र कोई नही हुवौ। तठै राजानै घणौ सोच लाग रह्यौ छ । राज तौ करै छै पीण पूत्ररी चीता प्राग क्यूई प्रावैडै नही । मनमै विचार छै-पूत्र वीना राज किण कारैम ।' दुहा२ – सिंगालौ' परि षीलणौ , जिरण कुल एक न थाय' बे।
तास पूरांणी वाड ज्यू, दिन दिन माथै पाय बै॥७ पूत्र नही ईक मांहर, तद घर सूनी होय बै। ईम राजा नित चितवै, लेष विधाता जौय बै॥ ८६
ख. तीको वडो सुरवीर, दातार छ, मोटी रोधनो धणी छै। तोणरै सात अस्त्री छ, पोण पुत्र कोणहीरे नही।
ग. घ. तिण (घ. तीणी) राजारै सात रांणी छ । पिण (घ. पीण) कोणहीर (ध. कुणोरै ) पुत्र नही।
१. कोष्ठबद्ध वाक्यावली ख. ग. घ. में निम्न रूप में है-ख. तीणरे वास्ते राजा ऐ घणा देवी, देवता, षट् दरसण, छत्रीस पाषंड, चोरासी चेटक, बीजा ही दाय उपाय करी पूछचा, पुज्या तो पीण पुत्र नही । पुत्र वीना राजाने चीता उपनी। राजा इसो मनमे वीचारीयोपुत्र वीना राज्य कोसा कामरो।
श्लोक-अपुत्रस्य गृहं सुन्यं दीससुन्यं च बंधवा ।
मुर्षस्य रोदयं सुन्यं सर्वसुन्य दरिद्रता ॥ १ अपुत्रस्य गंतं नास्ती स्वर्ग धर्मो च नेव च ।
तसमात पुत्रं मुषं दृष्टया पछात, धर्म समाचरत् ॥ २ ग. प.-राजा घणा दाय-उपाय कीधा तो पीण (घ. पीण कुणीर) पुत्र नही। राजाने चीता घणी-बेटा वीगर राज कीस्या (घ. कुंणी) कामरो नहीं।
२. ख.-अथ पंजाबी । ग. घ. में ये दोनों दूहे नहीं हैं । ३. ख. सोगालो. ४. ख. अरी। ५. ख. पेलणो। ६. ख. होय । ७. ख. परांणी। ८. ख. घाव । ६. यह दूहा ख. ग. घ. प्रतियों में नहीं है।
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