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________________ बात सालूरी [ ५३ ३. वारता - Aईण भांतसूं सौच करतां घणा दिन हुवा। ईकदा समाजोग रै विषै एक गायांरै एवालो प्रायने पूकार घाली - जौ माहार गाया चरावा जावा, जिण रोही में सूर एक हाल्यौ छै, सू गायान दुष दैवै छै, तीणरौ जावतो कीजौ, ज्यूँ गायान सूष होवे । तर राजा सूर नै मूछा हाथ फेरै नै वट घाल नै नगारचीन को - नगारै सताब हुवें । ईसौ कैहने रजबूत सीरदार सर्व तईयार हुवा | सारा ही सीरदार मूछा हाथ घाल नै हथीयार सरवस किया । घोडा पिलांण हुवां । नगारारी धूस पडी । सूरा पूरा असवार हूवा । राजा असवार हूय नै सिकार चालीयो | A दहा - हथीयांरा पाषल जूडे, कलहलोया के कोरण बै । १६ हडवड श्राग होसता, वन दीस प्रायै दौर बँ । एवाली मारग चले, वाजे नगारां ठौर बॅ ॥ १० ४. वारता - [ इण भांत सूरनै सोधतां, चालतांन घणी वार हूई, पिण सूर ort नही। सूरज प्राथव पीण लागौ । तर रजपूतां उमरावांरा, सीरदारा सगलाइ राजाजीसूं अरजै कीधी - महाराजै ! सूरजै प्राथमो छै, तिणसूं पाछा चाल्यौ । तठे राजा सूण नै कहै छै - वडा सीरदारा ! वलै पाछा कुण आवसी ? अठे ही डैरा कर दैवी; परभातरा वलै सूरजै सोधने सिकार करस्या । ईसो वचन सू राजा कह्यौ । तठे डैरा रोही कीया । रात घडो चार पांच गई छै । तद एक प्राथूनी कांणी अलगौ थको एक भाषर उपर अगन वलतीरौ चानणौ दीठौ । तठे राजाजी चांनणौ देष नै सारा ही उमरावानी कह्यौ — जो डूगर उपर लगन बलै छै, तीणरी षबर ल्यावौ । देखा उठ काई छै ? तरै उमरावा सूण नै बोलीया - माहाराजै ! आधी रातमै वादेव षबर करणने जावा, सौ इण रोजगारमै काई मी ? तरै बलै राजाजी कहीयौ - ईण वातरी खबर ल्यावो तिनै मोटी रोझ करू' नै उणनै मोटा करूं । तरा उमरावा कह्यौ — माहाराज ! मारी तो प्रसंग कोई नई, कुत कुमरे, काई जांणा, उठे कांई चरित्र है ? ] A - A. चिन्हान्तर्गत पाठ ख. ग. घ. में इस प्रकार लिखित है ख. इसो चींतातुर थको राजा सदा ही रहे छे । होवे एकदा समयरे वीषे राजा समस्त सोकार चढीया । ग. घ. - तद ऐक सीमै ( घ. तदी एक दीन ) राजा सीकार चढो (घ. गयो ) १. २. - उक्त दोनों दूहे ख ग घ प्रतियों में नहीं मिलते हैं । [ - ]. कोष्ठकान्तर्गत पाठ ख. ग. घ. प्रतियों में निम्न रूप में वर्णित है ख. सुर वांसे घणा अलगा गया। दीन श्रस्त हुउं । तरे वनमांही ज रहीया । गोठ घरी, वल त्यार हुई । सारो साथ जीभ्या पछे रात घड़ी च्यार जातां राजाए डुगर उपर 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003392
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshminarayan Dixit
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1966
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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