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________________ रीसालूरी वारता ॥ श्री गणेशाय नमः ॥ अथ रीसालूरी' वारता लिष्यते । [दुहा- गणपत दव मनाय को, समस्त (रु) सारद माय । वात रसालू रायकी, कडू रसिक सूषदा [य] ॥ १ लेष विधाताजि लोष्या, तीमही ज भुगतै सोय । सूगरण नरां मन जाणज्यो, वात तरणो रस जोय ॥ २ वेधालू मन वीधयौ, मूरष हासो होय । जांरग सोई सूजारण नर, अवर न जांन कोय ॥ ३ कथा रसिक कविराय की, जीभा कहत वनाय । रिसाल नप विध कहू, वाचो चित्त लगाय ॥४ राग रंग रसकी कथा, प्रेम प्रीयास विलास। वात भेद स पै कहु सूंगणा पूरण पास ॥ ५ ] ४ १. अथ वारता - श्रीपूर नाम नगर, तिणरै विष राजा सालवाहन राज करै छै । [" यू ईम घणा दिन विता । तरै सालिवाहण देवगत हूंवौ । तरै प्रधान उम्रांवा भेला हुयनै वडो पूत्र समस्त कुमर नामै, तिणनै पाट वेसाणियौ। बालक-वयमै जूवानपणौ प्रायौ। तरै सारी वातमै, राज-काजरी रीतमै समझीयो । भली भांत राज करै छै। राजारो तप-तेज जोरावर बधीयो। वीण सं[म्यै] सीह, वाकरी भेला चरै छ । भोमीया, ग्रासीया साराहि पाणनै श्रीहजूररी चाकरी करै छै। दुनीया घणी सूष पावै छै । व्योपारी परदेसा(सी) घणा आवै, जावै छै । तीणरो हासल घणौ पावै छै। सारै ही सोभा राजरी घणी बधी छ । राजा समस्त देवतारा विलास ज्यूं साता रांणीतूं करै छ । १. ख. रीसालुकुमररी। ग. रीसालुकुंअररी चोपई। घ. रोसालुकुंवरकी। २. ख. घ. वात। ३. घ. में नहीं है। ४. चिन्हान्तर्गत दोहे ख. ग. घ. प्रतियों में हा हा ५. ख. ग. घ. में नहीं है। ६ ख. रे। ग. के। ७. ख. सालीवाहनरो पुत्र समस्त राजा। ग. सालिवाहनको बेटो राजा समस्त (घ. समसत राजा) । ८. कोष्ठकान्तर्गत पाठ ख. ग. घ. में निम्न रूप में मिलता है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003392
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshminarayan Dixit
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1966
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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