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________________ २२४ ] परिशिष्ट २ (ख) क्रमाङ्क पृष्ठाङ्क पद्याङ्क । कृ० पृ० प. छन्द पधरी-अनुक्रम ४ बतलायो ईम केहरि बडाल, कोप्यो १ उपजी कोडी धज घरि प्राय, लषमी क प्राय जमजाल काल -६६ चंद मन उछव लगाय २-१४ २ उपत जगमंदर जगनिवास, पर दोहन- ५ भयो प्रातकाल परकास भान, बन को शोभा प्रकास २६-२३१ पंषोजन बोलत्त बांण ६-६५ क ३ कोप्यो क अब प्रोहित कराल, जग्यो ६ वणि महल सपतषंड गगनवाट, कण क सोर ढिग अगन ज्वाल ३७-२६८ __ हेम जटत चंदण कपाट - २१-१७१ भ परिशिष्ट २ (ख) वात रीसालूरी दहा-अनुक्रम १ अगन सरण ताहरो करू ११०-२०३ २ अगर चंदणरा ज(ल) कड़ा (टि.) ११३-२८ ३ अगर चदन करी एकठा (प.) २०५-६४ ४ अपुत्रस्य गतं नास्ती (टि.) ५२-२ ५ अपुत्रस्य गृहं सुन्यं (टि.) ५२-१ ६ अब बेगा मिलज्यौ हठमला १०६-२०० ७ अब वसन्त ही प्रावही (टि ) १४३-७४ ८ प्रमी छडक्का नांष कर (प.) २१०-६६ ९ अमृतवेली जो चरौ ६१-११७ १० अमृत वेलो वावीसो (प.) २०२-४८ ११ अवगुणगारी गोरडी (प.) २०५-६५ १२ अवे प्रांबो उवे प्रा' (प.) २१५-५८ १३ अहौ-ग्रहौं रैणी वीगती ११६-२५३ १४ अहो रीसाल कुंवरजी १०६-१८१ १५ प्राइयो लेष पालाहका १००-१५८ १६ पाईयो कुंवरजी प्रावीया १०१-१५६ १७ माछो कापड चोल रंग (प.) २०४-६१ १८ आज उजाडा देसमै ६६-१४६ १६ आज कुंवरजी रीसालूवा १२३-२६८ २० प्राज मेहिल पाछौं वणौ ९७-१५१ २१ प्राज रूपाली रातडी १२२-२६५ २२ प्राज सलूणी रातडी ११६-२३१ २३ अाज सूरज भल उगीयो १३२-३०७ न प्रति भलो १५-१४० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003392
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshminarayan Dixit
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1966
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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