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________________ बात रोसालूरो [ ६५ दूहा- देषो छोरू(डू)मष सदा, माईत देषै मास बे। बार बरसरौ बंध करौ, राष्यौ माता निरास बै ।। ४२ एहवो माता-पिता तरणो, मोह जगतमे जांरण बे। मुझन केदतरणी बिधै, कीधो परवस प्रांरण बै ॥ ४३ सीह तणा जेवा बाछडा, किम बैधीया रहै बध बै। होणहार सो होयसी, विधना कामना अधबै ॥ ४४ पूत्र तरणी वांछा घरणी, होव जगमै जारण बै। . ईण थोडे हु जनमीयो, तो मुझ बंध्या प्रांरण बै ॥ ४५ तो इहां बंधमै सरचा, रेहवो उ जूगतो एह बे। . होणहार सौ होयसी, वूरी य भली को जेह बै॥' ४६ १२. Aवारता-ईण भातसू कुवर मनमै वीचार नै पचास मोहरांरो संकलो दीयौ न वरजै राषी-षवरदार, कठहि जाब काढजे मती। इसौ कहनै कुंवरजी उठ नै महिलां बारै आया नै चाकरान कहीयौ-जे श्रीमाहराज कठै वीराज्या छ ? तत चाकर बोलीया-कुवरजी साहबजी ! श्रीमाहाराज तो सीकार षेलण गया छै । त? इसो कुवरजी सूण नै महला हेठ उतरचा। उतर नै दरीषानै पधारया ।A Bसभा जोड तठै तिणही ज वार माहै राजाजीरौ प्रोहीत दरबार आयो । नाव अाजबादास छ । तीणनै प्रावतो देष न कुमरजी आदमीयान पूछीया-प्रो उजलायत आपण दरवारम कुण पावै छ ? तठे चाकर बोलीया-श्रीमाहाराज कुंवार ! प्रो घररो प्रोहीत छ । प्रापरी वेला लीधो तीको है । सो सूणन कुवरजी १. ४२ से ४६ तक के दोहे ख. ग. घ. प्रतियों में अप्राप्त हैं। A-A. चिन्हान्तर्गत पाठ के स्थान में ख. ग. घ. में निम्नांश ही उल्लिखित हैख. हीवे एकदा राजा समस्त सीकार चढीया। उठासु कुवरजी जाय दरीषांनो कीधो । ग. ध.-तदी रीसालुं म्हैलोमैथी उतरे बारनै दरीषांने पाया। राजा तो सीकार गया था। B-B. चिन्हित पाठान्तर ख. ग. घ. प्रतियों में निम्न प्रकार से उद्धृत है ख. एहवे राजरो प्रोहीत जोतषी छ, सो आदमी त्रीस-पेत्रीस लीयां दुरबार पावे छ । एहवे प्रोहीत पुछ्यो-जे दरोषाने डावडो कुण बेठो छ ? प्रोहीतजी ! ए माहाराजकुमार छ । तद प्रोहीत षीजने कहे--अबारुही ज डावडानु कांई उतावळी हती, बारे वरस मांहे मास ६ थाकता हता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003392
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshminarayan Dixit
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1966
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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