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बात रीसालूरी दूहा- नवल सनेह पीहर तणो, पीण सासरीयौ परधान बै।
सासरीयौ जुग जुग तरणो, सूष पीहर उन मान वै ॥ ४० कुलवटनी कामरिण तणौ, सासरीयौ सीरदार बै। इश्वर गत जाणे षरी, प्रादर पुं(कु)जी नार बै ॥' ४१
११. वारता-इण भातसूं पेम-कुसलथी पोहरै गई, माइतासू मीली । साराहीनै सूष हवौ। हिवै कोईक दिन विता । हिव कूवरजीरा मनमै पूठली वात रात-दिन मनमै लाग रही छै । इंतरा मांहै धायमानारी बेटी 'मूधमाला नांमै' तिका कुमरजी पास कि काम पाई। तर कुंमरजी तीणने पूछवा लागाजो मोने बाहिर नीकलवा नही दैवै नै षांडाने परणायौ, मोने वीद वणायतो न कीयौ, सू काई जांणीजै छै ? इण वातरी षवर वतावै तो तुंनै घणी मोटी करू, मूह माग्यौ धन देउ । ___ तठै इसा समाचार सूणन धायरो बेटी बोली-श्रीमाहाराजै कमार ! प्रापरो जनम हवो छो, तर घररो जोसो नै घररो प्रोयत तिण तो लगन देषो न कहीयौ-श्री माहाराजा ! इण बालकरो जनमै षोटी वेलारो छै, नषत्र षोटो छै, तीणसू वार वरस ताई कुमरजी नै गुपते राषज्योजो नै वार वरस तांई मा-बापरो मुडो देषे नही । ज्यौ मूडो देषै तो विगाड उपजै, मोन घात ज्यं छ, सो कवरजी न तो[मह] ला दाषल करज्यौ, इण भातसू प्रोहीतजी कहीयौ। तिणसं थांन मौलामै राषै छै नै मूंहडौ देष नही छै । इणही जै कारणथी दोय रांणी परणाइ छै। इसो जाब कुमरजी सूणनै मनैम विचारीयौर--
१. ३६ एवं ४०वां दूहा ख. ग. घ. प्रतियों में अप्राप्त है। २. इस ११वीं वारता की वाक्यावलो ख. ग. घ. प्रतियों मे निम्न रूप में वर्णित है--
ख. हीवे एक दीन कुवरजी हजुरीया चाकरनु पूछे--मांनु महीलां माहे क्यूं राष्या, बारे निकलवा न्ही दीए सो कोण वास्ते? तद सघलेइ हजुरीये अरज कीनी-माहाराज कवरजी ! प्रापर्नु करडा ग्रहांमे जनमीया। तीणथी वरस बारे सुधी महील मांहे राषे छ । प्रोहीतजी जोतसीए कहीयो छ ।
ग. अर रीसालु कहुपासने कह्यौ-मांन महला मैं क्युं राष्या छै, बारणे क्यु नीक- . लवा दे नही ? तदी धाय कह्यो-माहाराज ! आपरा घररो प्रोहीत वारां वरस तांई राष्या छ ।
घ. पर रसालुं कहा-धायनै पुछ्यौ--मांन महलांमै क्युं राष छ, बारै क्यु नीकलवा दै नही ? तदो रसालुनै धाय कह्यौ-माहाराज ! प्रापरा घर रै प्रोहितजी कहो–कुंवरनै बारै वरस ताई मैहलांमै राख्या छ ।
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