SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 132
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बात रीसालूरी संग सूहेलो पोउ तरणौ, दुहिलो विछडवार बै। पीउ र अक्षर जीभ थी, नहीं छू टसी नार बै ॥ ३६ कुमर कहैजी गोरीया, बहली करस्या वार बै। सूगरणा सरीषो लोयरणां, वेध्यां बांम नूहार बै ॥ ३७ राजा भोजरी मांनरी, थे पूत्र गुणवंत ।। रूपवती रलीयांमरणी, सौ क्यू भूल कंत बै ॥ ३८ वेलारा साजन भणी, बीसर सोई गीवार बै। इण वोध माहोमाहैथी, कोधी वान करार बै' ॥ ३६ १०. [वार्ता-ईण वीधसू कुवरजी, रांणीया वातां कीवी। तठे कुवरजी आपरा हाथरी सवा लाषरी मूंदड़ी सहीनांण वासत रीझ दीवी - आ मूदडी हाथ थे परीहजौ । न कडिया षजुर नावा सहित रीझ कीवी सू रीझ मान बेटीनै दीजौ। कवरजी बोलीया। राजा भोजरी बेटी कहै-पापणे थाहारै प्रो सनाण छ - माहरी वाडी मांहै एक प्राबौ अमतफल नामै छै, तिणरै सात कैरीयारो झूबषो छ, तिको सदाइ कालो लागो रहै छ, (प)डियो देषो तद जाणजो जू कवरैजी पावसी। प्रो सनाण छ। तरै राजा भोजरी बेटी बोली-श्रीमाहाराज कूवार ! इण सेहनाणीरी षबर कुंकर पडसी, आबा पाठ नै उठे हुआ, जोड किसि विध लागसी ? तठे कुमरजी कहो-यो प्राबी देवांसी छै। साथै चीत सांमरौ प्रांवौ कराय देवौ झूबषा सहित सौ अठ पडसी । तरै थाहरा चितरांम मो अबषौ पडसी तरै नगै पडसी। इसौ कह्यौ त? भोजरी बेटी कहै-श्रीमाहाराज कुवार ! प्रो सेनाणे ठीक वतायो । इण भातसू परभातैरै राजा परधाननै बूलाव नै घणी भोलावण देधी नै रांणीयान सीष दीवी। सौ आप रा ठीकाणा पूहती।] १. ३६ से ३६ संख्या वाले दूहे ख. ग. घ. प्रतियों में नहीं मिलते हैं। [-] कोष्ठकान्तर्गत पाठ भेद ख. ग. घ. प्रतियों में इस प्रकार मिलता है--- ख. इम कहे ने हाथरी मुद्रडी, कररो पंजर दीधो। वले कहीयो--थारी बाडीमे एक अमृतफल नामे प्राबो छ । तीणरो सात केरी रो जुबषो एकण चोटसु पाडु तद माने डायां जांणजो। इम सुषवीलास करतां प्रभात हुओ। तद प्राणो करायो । वहु दोनु पोहर गई। ग. घ. तद 'नीसांणी दाबल' हाथरो मुंदडो दीघो। रसालु षंजर (घ. रीसालं जन) दोघो । प्रांबारी सात कैरी पडै जदी मुंनै आयो जाणजे । तदी बहू दोई पीहरां गई । '_' चिन्हित पाठ घ. में नहीं है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003392
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshminarayan Dixit
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1966
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy