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बात रीसालूरी जाणोयौ-जैहि पापो उहि ज कुकरमारो करणहार छै। इतै। माहै प्रोहितजी सभाने देषने उला(ठा)पेला चाकरन पूछीयो-प्रो रे ! ओ छै(छो)करो कुण छै ? ईतरा आदमी कुं बैठाछ ? त, कुवचन सूणने चाकर बोलोया-प्रोहितजी ! श्रीमाहाराज कुवार दरीषांने पधारया छै। तटै प्रोहित वोलीयो-अरै आज कुंवर दरीषांणो कीधौ, सूं कोणरा हकमसं कोधो छै ? B
- [इसो चाकरांनू सूणायनूं बडी ठसक राष नै कुवरजी कनै प्राय नै वडी रीस कीधी ने कहौ-कुवरजी ! इसा उतावला हवा सो तो मास इक घटै छै, पछ ही बारै आया हूंता । त, कुंमरजी बोलोया-प्रोहीत साहिबाजी ! थे मोन बारै बरस तांई महलांमै राषीया, ईसो कांई कारण जाणीयो ? ततौ प्रोहितजी बोलीया-जे कुमरजि ! नक्षत्र ग्रहांरी तरफंसू काम करयौ छै नै मास इक घटै छ, सौ वलै मलम राषस्यां । त, कुंवरजी बोल्या-प्रोहितजी ! इतरा दीनै रच हो सू घणी वात छै; अब पापा सारू कोई नई । तठे प्रोहीत बोलीयो-या वार तौ थाहरी कीतरीक वाता सारी वातम भोलो छ; थान पीण अबारू मला दाखल करस्या । तठ कुवरजी रीस कर न उठोया। हाथम सोनारो गुरजै हूती सौ प्रोहितजीरा माथाम दीवी ने कह्यौ-तुंम्हारै सीरायैत मारधम हुवो तो विर माहाराजरै वलै कोय नही ? पीण राजवीयांरै थाका सरोषा घणा छै । इसौ कहीयौ।]
ग. घ.--तदि ईतरायकमै (घ. अतरामै) प्रोहित आदमी वीस-तीससुं प्रावै छ । तदी (घ. तदी कुंवर देष्यौ यो कुण प्रावै छै ?) उमराव कह्यौ--प्रो यापरा घररो प्रोहित छ ।
आपने बार बरसताई (घ. तांई मांहे) प्रणी राष्या छ। तदी प्रोहीत प्रापरा आदम्यांसु पूछयौ-नौ कुण बैठो छ ? 'तदी पादम्यां कह्यो--राजाजीरो बेटो रीसालुंजी छै ।' तदी प्रोहितजी षीज्या-छोकरांनै प्रबारू ज काई हुवो छै ? महीना पांच ‘पछ' नीकालणो। थो। -' चिन्हित वाक्य एवं शब्द घ. प्रति में अनुपलब्ध हैं।
-] ख. ग. घ. प्रतियों में पाठभेद इस प्रकार है--
ख. तठा उप्रंत प्रोहीतजी प्राय (4) कुवरजीनु आसीर्वाद दीधो। तद प्रोहीतजी ने] कहे-प्रोहीतजी ! थे मांनु महीलां माहे वयं राष्या ? तद प्रोहीत बोल्यो-कुवरजी ! आपने करेडे नषोत्रे, क्रूर ग्रहे महीलांमे राष्या। तद कुवरजी कहे ना ना, मांनु तो थे राष्या छ । जदी प्रोहीत कहे -जामो, भे राष्या छ उने फेर राषसां । इसो सुण ने कुवरजीनु रीस चढी । हाथमे सोनारी गुरज हती तीणरी प्रोहीतरा माथामे दीधी। ___ ग.घ.-तदी प्रोहित 'पावी' प्रासरीवाद दोधो। अतरायकमै (घ. तदी) कुंअरजी बोल्या--क्युं प्रोहितजी ! बारा वरसां तांई 'मान' क्यं (घ. थे) राष्या था ? तदी प्रोहित कह्यौ-हुं कांई राष; नषत्र प्रमाण रह्या । तदी (घ. तदी कुंअर) कह्यौ-न, माने तो थे राण्या छ । तदी प्रोहीत कह्यौ-'ना' मै राष्या, नै फेर राष्या (घ. फर राष्या छै)। तदी कुअरजीनै रीस चढी । तदी हाथमै गुरज थी, तीणोरी माथामै पाडी (घ. तीणरी उपाडन माथाभ दीधी ।) -' चिन्हित शब्द घ. प्रति में अप्राप्त हैं।
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