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________________ १५० ] बात नागजी-नागवन्तोरी दूहा सोरठा- तम्बोली आपो पान, दोय बीड़ा बाँधे करी। ___ गई तमीणी स्यांन, काईरे मुख साहमों भरणे ॥ ७ तम्बोळो कहैसोरठा- प्रांख्या प्रांकस बांण, तांख करे ने तांणीया। न डरै तेण दीवांण, सो माढु नैणा ही मांणीया ॥ ८ ७. वारता-तंबोळीरैस' पान ले तलाव गया। सु हमै रात दिन नागवंती नै नागजी खेतमैं ऊंचो मालो छै. जठे बैठा रहै छ, रंगरळीरी वातां करबो करै छै । यु करतां माहरो महोनो आयो । सु खेतरो धान तो धणी ले गया। तरै परमलदेजी कह्यौ-नागजी महाराजकवार ! हमै गढ़ दाखल हुयजो नहीं तो लोक भरम धरसी नै प्रा वात छांनी न रहसी। प्रा वात छांनैरी छ, गुपत राखणनु ज्यु छ । तरै नागजी कह्यौ--सुहारे गढ जांवसी । हमें नागजी गढ़ चढ़े छै नै नागवंती कमर बंधावै छै नै दुहो कहै छैदूहा- कमर बंधावत कुवरकु, विरह उलट गयो मोहि । सजन बीछड़ण कब मिलण, काहा जाणे कब होय ॥६ हे विधना तोसुकहूं, एक अरज सुरण लेत । वीछड़ण अंक'ज मेट कर, मिलबैको लिख देत" ।। १० नागजीवाक्यंदुहा- गोरी हीयो हेठ कर,६ कर मन धीर करार । सांई हाथ संदेसहो, तो मिलसा सो सो वार ॥ ११ ८. वारता--नागजी कमर बांध हालीयो । तरै नागवंती गळ मैं बांह घाल नै नागजीनु छातीसु भीड़नै गल-गली होवण लागी । तरै परमलदेजी कह्यौ - दुहा- गोरी बांह छातीयां, नागकुवर न झुराय। जाणे चंदनं रूखड़े, बेल कलुवी खाय ।। १२ गोरी दागल हाथड़ा, नाग कुवर कर सेल । जाणे चंदनं रूखड़े, अधर विलंवी वेल ।। १३ ६. वारता-परमलदेजी कहै छै-नागवंती अब तु हंसने सीख दे ज्यु नागजी गढ़ पधारै । तारै नागवंती कहै छै-- १. ख. हिव । २. ख. प्रतिमें नहीं है। ३. ख. जावसां । ४. ख. लेह । ५. ख. देह ६. ख. हथ करि । ७. ख. कहै छ । ८. ख. नठाय । ६. ख. कलुबा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003392
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshminarayan Dixit
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1966
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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