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________________ बात दरजी मयारामरी . [ ११ मालवायकअण दारूरै ऊपरै, वैरण पडजो वोज । जसडी थं दीसै' जसां, आज रहेली ईज ॥ १२४ कैफमही च (छ) कीयौ कवर, नैणी फरगी नींद । जागै नह मांसं जसां, वैरण थारो वींद ॥ १२५ जसांवायकअण दारूसू हे अली !, मारू भी दुष पात ।। सो दारू किण विध सहै, ज्यांरी कारू जात ॥ १२६ मयारांमवायकलाली यक कावल लली, साली मौ उर सूल। अरण काली घणनै अबै, माली ! कर माकूल ॥ १२७ मालवायककंण थाने कारू कहै, मांक थे मारू । दारूकी पी धल [धण] दर्ष, छैकी अरण सारू ॥ १२८ जसीयां मद पीवौ जदयां, राजद मतरी वौह । औ दीवौ घर प्रापर, जिण दीठां जीवौह ॥ १२६ अतरौ अवगुण प्रापमै, मोटो यक म्यारांम।। आप न जागै प्रापरी, कामण जागी काम ॥ १३० जसां अपछर जनमको, जसा आभ की झाल । जसा हंस थाकै जसी, भोगौ नी भूपाल ॥ १३१ घम-घम वाजै घूघरा, वाजै चम-चम वीच (छ) । तम-तम यम मालू तवै, म्यार (म) चसम म मीच ॥ १३२ पहला दारू पायने, कालै वचन अकाज । म्यारौ आर्ष मालकी, अलवल रहां न आज ॥ १३३ २६. वात (द्वावैत)- अलवल (र)ऊभा रहां नहीं; थांका वायक सहां नहीं । मे आया वचनांका बाधा; जसांका माजना लाधा। पूरबली प्रीत पालता ता(था); अतरा दन रीस टालता ता (था) । ढूंढाडमै नीपज सो ढांढी; मे तो जसां आजसू चां(छां)डी। थांकी जसां सरीषी उगै (8) लाषां परणां; मांकी सोभा मे कांई वरणां; मांनै तो अनेकां न्यौरा करै छै; मारै यण विना कांई नहीं सरै छै ? १. ख. दीजै। २. ख. न । ३. ख. जी । ४. ख. सालौ । ५. ख. घल । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003392
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshminarayan Dixit
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1966
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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