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बात रीसालूरो तुरत मोहर लेई करी, घडीयो पंजर घाट बे। सूवडौं मैंना बेसाडीया, जडिया बेहु कवाड बे ॥ ७४ जतन करै च्यारु जीवतरणां, एक ल्यौ कुंवर अपार बे।
पाणी-पंथौ हयवरौ, च्याव्यै ज्यां तो जात वे ॥ ७५ २०. [वार्ता-इण विध सूषमै च्यारांहिरा जतन करता थकां घणा दिन हुवा छै । इतरै द्वारका नगरी पाया । प्रागै दरवाजा माहे वडीया। तठे नगरी सुंनी दीठो । त? सूवानै कुवरजी पूछीयौ-सौ काई जाणीजै । सूनी नगरी सगली दीसै छै ? त, सूवौ, मैनां कुवरजीन कहै छै–श्रीमाहाराज कुंवार ! आजसू छ महीना पहली अमै पाया छौं । सू अठै म्हारा साथरो सूवौ बैठो छौ । म्है पिण उडता आया छा । त? मील बेठा वातां कर छा। त, म्है पोण पूछीयौ-प्रो नगर सूनो क्यूं दीस छ ? तरै उण सूवौ कह्यौ-इण सेहरमै राक्षस हील्यौ छ । सौ आदमीयानै मार षाधा । घणा ज्यान कीया। तिण डरसं वले मनष्य हुता सो नासी गया। ईण तरे आ वात सुंणी छौं। सौ कुवरजी साहैबा ईसा वचन माहेना उण सूवै कह्या । ईण प्रकारै यो नगर सूनौ हुबो छ।]
[त, कुवरजी कहीयौ सू सारी हकीकत सूंणनै सहरमै चालीया । हाट २ बाजार सणा पडीया छ । तेल, घीरत, मौहरा, कपडौ, चावल, दाल, दुसाला, गैहणा, मोती, मांणक, हीरा, पना, पूषराज, पीरौजा, वासन, थाली, वाटका अनेक प्रकार की वसता पडो छ । पोण कोइ धणी नई । इण भांत देषतां देषतां राजा भूवनमे गया। त? सतभूमीय प्रवासै चढीया । मेहलामै डेरो कीयो ने सवाने कुवरजी कह्यौ-हु रसोई लेनै आव छ, जीतरै जाबतौ कीजौ । इतरौ कंवरजी बजारमै आयनें कांसेटीयांरी हाटमै थाली, लोटा, चरी लीवी ने पाटो, घरत, षांड लेने पाछा पाया। रसोई जीमरण करने ज़ीमीया । ताजा हुवा । हिवं सवान कूवरजी कहीयौ-हुरांगीरे वास्तै व्यई हीरनी ल्याउं छ; थे जाबतो कीजौ। ईसौ केहन घोड चढी नै रौहीमै जावता एक तुरतरी व्याई हीरणी बच्चानै चूंधावती देषी नै वचा सूधी लघू-लाघवी कलासू राणीनै वास्तै पकड
___ *७३-७५ तक के दूहे ख. ग. घ. में अप्राप्त हैं ।
[--] ख. इम करतां वरस पांच हुमा। ऐक दिन कीरतां द्वारीका नगरी गया। देखें तो सर्व सुनी पड़ी छ ।
ग. ईम करतां घणा दोन हवा। एक दिनकै वोष धारावास नगर पाव्या। प्रागै देषे तो धारावास नगरी सुनी पड़ी छ, दैतां मारी छ । नगरी मे लोक कोई नही।
घ. तदी धारावास नगरी गया। नगरी सुनी वीठी, देवतां मारी।
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