________________
[ ५३ ]
परिशिष्ट १. ( ख ) - राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान जोधपुर, गुटका नं० ३५७३ (४५); साइज २०४२८.८ से.मी. पत्र १ (१०६ वां ) ; पंक्ति कुल ६८; अक्षर० ३२ है । लेखन प्रशस्ति नहीं है । अनुमानतः लेखन १८ वीं शती है । गुटका जीर्ण-शीर्ण है ।
३. नागजी - नागवंतीरी वात: इस वात का सम्पादन दो प्रतियों के आधार पर हुआ है । क. संज्ञक आदर्श है और ख. संज्ञक के पाठान्तर दिये हैं ।
क. संज्ञक - राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान जोधपुर, ग्रं० नं० ४३२० प्रेसकापी है | कॉपी साइज में ३८ पृष्ठ हैं । यह प्रेसकॉपी श्रीनगरचन्दजी नाहटा, बीकानेर द्वारा करवा कर मंगवाई गई थी ।
ख. संज्ञक – राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान जोधपुर, गुटका नं० ११५८५; साइज १६ १०.६; से. मी. पत्र ३२; पंक्ति० ६; अक्षर० २० है लेखन - प्रशस्ति निम्न है
" इति श्रीनागवंती नें नागजीरी वात संपूर्ण । संवत् १८५२ वर्षे मिति आषाढ वदि ७ भोमवारे लपिकृतं पं० केसरविजे [जये] न विकंपुर मध्ये कोचर सु लिछमणजी बैठनार्थ श्रीरस्तु कल्याणमस्तु |१|
४. वात दरजी मयारामरी : इसके सम्पादन में दो प्रेसकॉपियों का प्रयोग किया है । क. संज्ञक प्रेसकॉपी को आदर्श माना है और ख. संज्ञक प्रेसकॉपी के मैंने पाठान्तर दिये हैं ।
क. संज्ञक - राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, शाखा कार्यालय, जयपुर में सुरक्षित 'पुरोहित हरिनारायणजी संग्रह' की है। फूल्स्कैप साइज को यह प्रेसकॉपी दो खण्डों में विभक्त है । प्रथम खण्ड ग्रन्थ नं० १२७; पत्र १६ - २४ है । इस में वार्ता प्रारंभ से प्रकाशित पृष्ठ १६९ दोहा ४५ तक है और बाकी का अंश ग्रंथ नं० 23 पृष्ठ 8 तक में है ।
ख. संज्ञक - यह प्रेसकॉपी फूल्स्कैंप साइज की २४ पृष्ठ की है, राजस्थानी शोध संस्थान, जोधपुर की है। इस में 'वार्ता' का आद्यंश (४५ पद्यों तक का ) नहीं है ।
५. राजा चंद प्रेमलालछी री वात : इस वार्ता की भी दो प्रतियों का मैंने उपयोग किया है । क. संज्ञक आदर्श है और ख. संज्ञक के मैंने पाठान्तर दिये हैं ।
क. संज्ञक—राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान जोधपुर, ग्रन्थ नं० १२७०६ ( ११ ) ; साइज २२.५१३.१; पत्र० ८६ - ६७ ; पंक्ति ० १५; अक्षर० ३५ हैं । लेखनकाल सं० १८२६ के आस-पास का है । लेखनप्रशस्ति नहीं है ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org