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________________ बात रीसालूरी [ १३ दूहा- जे पर पूरषां कामनी, हील-मील लणहार बे। ते पतिनै काकर-समो, गिरणे नित की नार बे॥ १३१ ३०. वार्ता-इसो पातसाह मनमै वीचारी नै राणीनै कहों-'तरे ताई पातसाहकी मूदी करू, तैरा हाल हुकम, तैरा हुकम सारी पातसाहीमै करूंगा। तेरी आण-दांण कोई लोपन पावै नही । धनकी धनीयानी करूगां । हस वातकै वीचे जौ कछु कूड है तो षूदा मैरै ताइ सझा देवेगा। या वातमै कसीर न जाणोयौ । तुमांरा हीताकी कबूलायत इस तरफ रहैगी। अरी मेरा नगर नेहडा है। अब तुमारा मनकी तुम करो।' त? रांणी बोली-पांतसाह ! सीलामत, अबी ले चालौ तो ठीक है; नही तो रीसालू आवैगा तो वेत वनगा नहीं। तपातसाह रांणीनै लैनें उठीयो। त, सूवो नै मेंणां पीजरमै बेठो थी। तरै मेंना केहवा लागोदुहा- दस मास हंदी परणीया, कुंवर रीसालू तौय बे। सेवतां सोलह वरसमै, कीधी तो मनमै जोय बे ॥ १३२ रीसालू कुंवरने छोडनें, क्यू जावै घर ओर वे । पर पूरषांसू नेहडौ, किम कोज निज जौर वे ॥ १३३ ग. ऐस्यो हठमल पातस्याहन कह्यौ । तदी पातस्याहजी कांई कहै-थोडो सो पांणी पायो, तीरस लागी छ। तदी रांणी नीची उतरवा लागी। तद रांणी पातस्याहरो नाम पछ्यौ । तदी पातस्याह राणीने कांई कहै दूहा-- मेरा नाम छ हठोमला, नवहथा हठी होय बे । मेरी पाघ वतीस वड, उपर छोगा च्यार बे ॥ २३ रांणी पातस्यान काई कहै-रांणीवाक्यं दूहा----तु हठीमल तुहीमला, हठीया तेरा नाम बे । _रषी वेली जो चरे, सीर धरीयां प्राव बे ॥ २४ तदि हठीमल रांणीने कांई कहै दुहा- हुं हठवा हठीमला, हठीया मेरा नाम बे । __रषी वेली जे चरै, सीर जाएं तो जान बे ॥ २५ तदि म्हैल चढया। रांणीवाक्यं___ दुहा-ऐक षंड दुजे षंड, तीजे षंड प्राय बे। मे परदेसी पांथीया, थोडो सो पांणी पाव बे ॥ २६ वात-रांणी पांणीको कुंजो भर लाई । पाणी पीवा लागा। रांणी कांई कहै---- दूहा--कर छीदो क्युं कर पीवै, नीर ठुल ठुल जाय बे । ___ पंथी नही तीसाईयो, नयणां रह्यो लोभाय बे ॥ २७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003392
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshminarayan Dixit
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1966
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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