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________________ बात रीसालूरी हठमलवाक्यं हम परदेसी पंथीया, पाया तीरस्या आज बे। जों सूगरणी मन रंजी के, प्रापौ तौ सोझै काज ब ।। १२६ परीय उ(दु)हेलि छातीयां, बांधी नैरणां-बांरण ब । ताको त्रीस लागी षरी, रांणी करीय पिछारण ब ॥ १२७ रांणी सूरण मोहित हूई, कोधी घरण महार बे। रीसालू हंदी गौरडी, चोरडी करवा त्यार बौ ॥ १२८ माणस ते नही ढोरडा, पर त्रीय राणे नेह ब। नारी पत छोडो तुरत, पर पूरषांसू नेह बै ॥ १२६ ते नारी गढसूरडी, होवै जगमै हरांम वै। त्यू ए रोसालूरी गोरडी, हठमलसू हित काम बं ॥ १३० २६. वारता-इण भांतसूं जाब-साल करने हठमल नै रांणी बिछायत बैठा । माहो सनेहरी वातां करतां, चौपड रमतां पातसाह सारी ही वीध रीसालरी पूछ लीवी, मनरी वात सारो ही लीवी । चतुराईरी कलासूरांणीनै मोहत कीवी। हठमलवाक्यं एक पंड चढी दुसरे, तीसरे षंडे प्राय बे।। मे परदेसी पंथीया, थोडासा पाणी पाव बे ॥ ३० धारता- हठमल इसो कहीयो । तरे रांणी कुंजो भर पाणी पावा गई । हठमल पाणी पीवा लागो। रांणीवाक्यं दुहो- कर चीदा दारु घणो, नीर ढुले दुल जाय बे। पंथी नही तुं तरसीयो, नेणा रह्यो लोभाय बे ॥ ३१ वारता-जद हठमल पातसाह राजी हुऊ। रांणी पीण षुसी हुई। दोनुं नव षंडे महीले चढया। चोपड घेल्या। हठमल वाक्यं दुहो- चोपड घेले चतुर नर, दस दस मोहर लीगाव बे। नटण न पावे सुदरी, द्यो धुर अष्यर दाव बै ॥ ३२ रांणीवाक्यं नाहर सेती अधीक बल, साहीब चतुर सुजाण बे। हस हस वातां करत सुं, बगां (डा)सु कीसो गुमान बे ॥ ३३ वारता-इम प्रामा साहमा दुहा-गाहा कहीया, रम्या-घेल्या, भोग-धीलास कीया। हठमल रसालुको षबर पुछी-सीकार कोण वेला जाए छे, कोण वेलां पाछा पावे छे तोका कहो । तव रांणी कहे-पोहर १ दोन चढतां जावे छे, पोहर १ दोन पाछलो रहे, तरे प्रावे छ । इसो सुण ने हठमल असवार होयने घरे गयो । तठा पछे महीलारे बारणे मेना हती. सो बोली-भला भाभीजी ! सषरा हुआ, थाने छ मीनारा पाली मोटा कोया था, सो आज प्राछी कीनी; पीण रसालु भाइने प्रावणद्यो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003392
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshminarayan Dixit
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1966
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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