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________________ ६४] बात रीसालूरी ३१. वार्ता-A. इसा दूहां मेंणा रांणीनै कह्या । त? रांणी पीजरो षोल नै मेणाने काढीनै पाषा षोस नाषी ने कुरो लेवाने उठी। त, सूवै विचारीयोरांडडी मेनैन मारसी तो अबै डाव काढणौ। दूसो विचारने पीजरा मांहैथी सूवी नीकल नै मैनाने चांचमे पकडै नै उडीयौ । सू सेहर बारे दिषणा दिसै कांनी माहादेवरो देहरो छौ, तिणरै वारण एक मोटो प्रांबी छ, तिणरे पेडरै षोषाल छ, तिणमै मेनानै वैसाण नै कहै छैदूहा- कामरण होयडा कोरणी, जीवत रही तुं प्राज वे । हिव सारी सीध होयसी, नेह विलूधी नाज वे ॥ १३४ ३२. वार्ता-हिवै नाम्रकण रांड कनातूं जीवती छुटी छ । सो हमै पाषां-परा वेगी ही आवसी । षोण पीणोरा जतन करबौ करतूं। कीण ही वार्तमे कसर बात-तदी पातस्याह रजाबंध हुवा । नव षंडे म्हैल चढ्या, चोपड घेल्या । तदी रीसालूको वेई पुछचो-कदी सीकार जाऐ छ, कदी प्राव छ ? तदि रांणी कह्यो-पोहर दिन सकार चढ़ता जाए छ, पोहर पाछलो रहतां प्रावै छै । तदि हठीमल पातस्याह नै रांणीरो चीत-मन एक-मेक हुवो । जांणे-अस्त्री रंभा छ, ईणसुभोग भोग, ऐसी तो देवतारै घर नही। तदि हठीमल भोग-वीलास करी नर-भवनो लाहो लीधो, ऐक-मेक हुंवा। पोहर दोय रहे नै सीष मांगी। तदि रांणी कहो-तुम्हें नीत-प्रत ईण वेला प्रावजो, ईम कहने सीष दीधी। आप घरे गया। ईतर मैणां बोली-भलां, भाभी ! थे ऐसा हूवा । थांन महीनाका पाल्या था । सो थारा तो ऐसा लषण छ । पिण रीसालु भाईनै प्रावाद्यो । घ.-वारता--तदी पातसाह बोल्यो-थोडौ सो पाणी पावो । तदी राणी पावण लागी। दूहा--कर छोदौ पाणी पीव, नीर ढुली दुली जाय बे । __पंथी नही तोसाइयो, नणां रह्यो लुभाय बे ॥ १७ तदी राणी पातसाहारो नाम पुछयौ दूहा-मेरा नाम हठ भला, नवहठ हठीया होय बे। मेरी पाघ वती पुड, उपर लुगा च्यार बे॥ १८ वारता-तदो रांणी कह्यौ-उंचा पदारो। पछै नव षंडे चढ्यौ । रसालु वेई पुछचौकदीयक सकार जाय छै ? पोहर दीन रहतां प्रावै छै । पछ पातसाहा रांणी माहो-माहे हस, रम छ । मानव-भवरो लाहो ले नै सीष मांगी। तदी राणी कह्यौ-थे सदाई आवज्यौ । पातसाह परो गयो । पछै मैणां बोली-भाभीजी ! थे पण पाछा हवा ! भाई रसालुन पावादौ । . A-A. चिह्नभित पाठ ख. ग. घ. प्रतियों में इस प्रकार प्राप्त है-- ख. इतरो कहीयो। तरे रांणीनु रीस चढी। सो पंजरा माहेथी मेनाने काढने मार नांषी । तदी सुबटे जांणीयो-मोनु पीण मार नांषसी । तद लल-पल कर मीठे वचने कहीयोबाईजी ! मोनु गरमी घणी होवे छे, सो बारे काढो। तद रांणीई पीजरा माहेथी सुवाने बारे काढीयो । तद सुवटो उडने प्रांबे जाय बेठो । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003392
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshminarayan Dixit
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1966
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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