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________________ बात रीसालूरी [६५ कोई पडण देउं नही। न लारै रांणी नै पातसाह सोच कीयो । पातसाह कही-बेटे सूवटै घणी कीवो । अबै तो काम तरेदार छ । दूसो विचारै छै । तिण वेला सूवौ उडने सतर्भूमीया मेहला उपर प्राय बेठौ रांणी नै पातसाहनै हो केह छ A[दूहा- है सूगरणी म्हे पंषीया, किरणरे प्रांवा हाथ बे। पिरण छल कर म्हे छै तरया, बलि मांहरो नही नाथ वे ॥ १३५ पिण थै जावो गोरडी, पातसाहरे साथ वै । मांहरो धरणी जब आवसी, तद म्हे हौस्यां सूनाथ वे ।। १३६ साइद भरस्यां गोरडी, चौरडी कीधी चोर बै । सांहां घर पूहती गोरडी, करि करि बहु मनवार वे ॥ १३७ पिरण को दाय-उपायथी, लासां थाने इण ठोर वे । रीसालूरी तुं गोरडी, म्है मैतै कोधी जोर वे ॥ १३८ भला तुम्हे सुषीया हुवौ, म्हे दुषीयारो देह वे । साहिब करसी सौ भला, पंषी पंषी सा लेह वे ।। १३६ पाजूनौ दिन अति भलो, जीवत रहोया म्हेह वे।। हिव सारा ही थौकडा, करस्यां सारा जेह वे ।। १४० ३३. वार्ता-तटै पातसाह नै रांणी सूवारा दूहा सूण्या । तर मनमै जाणीयो-जे सूवटो काम षराब करे तो अाज तो प्रो काम न करणौ, सूवारै कोइ वतां करस्या। इसौ पातसाह विचारने रांणीनै कहै-है राणी ! आज तो थे अठे ही ज रही, साथै ले जाऊ तो सूवी छटैपग छ, सौ उडनै कुंवरजीन कहै । कुवर घोडौ दपटायने आंपांने पोच ने दोन्हांहोनै मार नाष । तिणसू आज माने सीष हुवै छै नै सूवारे येक पवनवेग घौडो छै सो ल्यावं छ । तिण माथे थाने चढाय नै एक घोडी में लेज्यावस्यां । ] ग. ईतरो कह्यो। ती वारे रांणीने रीस चढी। तदी मैणांको गलो पकड्यौ, पीजरा माही थी काढीने मारी । तदि सुंवटो डरप्यो; जांण्यौ-मोनै पीण मारसी। तदो सुवै चकोर थकै दाव कीधो । मोनै गरम घणी होवे छ। सुवान पीजराम्हैथी परो काढयो । तदी सुयो मैणांने मारी तदी सुवो ऊचो जाय बैठो। घ. तदी राणीने रीस पाई। तदी मैणारौ गलो काटयौ । तदी सुवौ डरप्यौ । सुवौ कहवा लागौ-मोने गरमाई घणी हवै छै। पीजरा माहीथी परो काढीयो। सुवो उडे नै नवषंडा महल उपर जाये बैठौ । [ - jख. ग. घ. में कोष्ठगत दोहे एवं गद्यांश अप्राप्त हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003392
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshminarayan Dixit
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1966
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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