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बात रीसालूरी
A तठे रांणी सूजने बोली - पातसाह ! सिलांमत, प्राप कयां सू प्रमाण है । तिण षोज रमायां सारा हि थोक होसी । प्राप दिन पांच सात तौ घोडै चढिने इण ही वेला पधारबो करो; विलास करे नै पधारबो करो । दिन पांच-सात पर्छ दाव लागसी, सो ही करस्यां । धिरां कांम सिध हूवै ।
दूहा - उतावल कीया अलूकीय, सनै सने सहु हौय वे । माली सींच सो घडा, रीत आया फल होय वे ।। १४१ ain विचारीने कहो, रहसी तिणारी लाज वे । ऊठ कहो उतावला, तो विरसाडै काज वे ।। १४२ षिजमत - ब धी रावली, जांणो चित्त मकार वे ।
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सालू ने छोडस्यू, कोइ क डाव अटार वे ।। १४३ सूष करस्यू सारी वातरी, पंषीडारी पुकार बे I लागवा नही द्यू एक ही, करस्यूँ हुय हुसीयार बे ॥ श्राप षूसी पीउं पधारीयै, दुष म करो कोई श्राज ब े । साहिब सारा ही हुसी, श्रपणा चित्या काज ब ।। १४५ ३४. वार्ता- इसा समाचार पातसाहनै कहीया । तठे हठमल सेंणासूं सीष करनें घरां दीसा हालीयो सो घरे पूहता । नें रांरणी दीलगीर हुयने सूती । सूबो सतभौमीया मेहलां चढीयो थको कुवरजीरी वात जो है । A
B इतरै सागी वीरीया हुई । तठै कुंवर घोडौ पिलावतां प्राया । ग्रागे सुवान मेहीलरे इंडारे वेठो दीठौ । तठे सूवाने कुवरजी पूछे
दूहा - आज उजाडा देसम, फरहरीयां पंषाल वै ।
चिह्न दिसी जावो चमकतों, नैणा करीय विसाल वे ।। १४६ पींजरीयारा पोढणा, सौ इहा किम तुमे प्राज वे 1
क्या विधवीत क दाषीय, कैसा हूवा श्राज काज बो ॥ १४७ B
A-A. चिह्नति पाठ ख. ग. घ. प्रतियों में नहीं है ।
B-B. ख. ग. घ. प्रतियों में गद्यांश एवं पद्यों के स्थान में निम्नांश ही प्राप्त है
ख. एहवे रसालु श्राया । तदी सुवटो रसालु प्रते कांई कहे छे
ग. प्रतरायकर्म रीसालु जी पीण श्राव्या । श्रनै सुवो बोल्यो । सुवो रीसालुन कांई कहैघ. तर रसालु श्रायौ । सुवो कांई क है - ।
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