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बात बगसीरामजी प्रोहित होरांकी राचत कहुं सिंगार रस, कहुं बीर रस कामकी। बणी बात हीरां बिमल, रसिया बगसीरांम की ।। ३६३ हीरां बगसीरांम हित, बात बणी बष्यात । सूर बीर हरषत सुणत, लेषत रसक लुभात ।। ३६४
ईति श्री बार्ता बगसीरामजी प्रोहित हीरांकी बात संपूर्णमः ॥ शुभमस्तु । यद्रसं पूस्तकं द्रष्टां तद्रसं लोषतं मया। सुद्ध प्रशुद्ध मशुद्धो पा मम दोसो न दीयते ॥ श्रीरामचंद्राय नमः ॥ श्री:॥
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