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________________ २०८ ] परिशिष्ट १ रीसालू पूछे-जे ए कुण छे ? दासी कहे-राजा भोजनी बेटो छे। त्यारे रीसालूइं पावरा मांहिथी चारों तरफ सोना मोहरू नांषी। दासीउं लेवा गइ । रीसाल घोडो लेइ जइ सांमलदेने माथें राष्यो। सांमलदे लाजनी मारी पाणी मांहें बेसी रही । दासी रीसालूनें कहे रे भाइ ! दूरो रहे, ए राजानी बेटी छे; राजा जांणस्ये तो तुंने मारस्य । दूहा- बांहडीये जल सजल, कलियल केस वलाय । दुवल थास्यो गोरडी, ऊंची करतां बांय ।। ८७ वार्ता-ति वारें सांमलदेइं हाथ ऊंचो कीधो त्यारे रीसाल माई पांणीमां पड्यो । त्यारे सांमलदे बाहिर प्रावी, लूगडां पहरी अनें दासीनें कहे--दासी, यूं पुरुषने बाहिर काढो, मरी जास्ये । त्यारे दासीइं काढयो । राजा सचेत थयो । त्यारे परिक्षा हेते राणीनें कहे दुहा- सरवर पाव पषालती, पावलीया घस जाम । जिण राजारे (न)ही गोरडी, तिणने रेण किम विहाय ॥ ८८ कन्यावाक्यं पाणी पी ने वाटथी, तुं मुंकइ सम तुल्य । जिण राजारी गोरडी, तिणरी पेंनी केरो मूल ॥ ८६ वार्ता- त्यारे रीसालू कहे--एक बार मुझस्यूं सुष भोगवो। त्यारें कन्या कहे- मारयो जाइस । रोसालू कहे-माहरू माy फिरे छ, मुनें तो कांइ दोसतूं नथी । त्यारे कंन्या कहे दूहा- माथू फिर तो मारग थी प्रो, नहीं ऊभेरो जोग। जिण पुरुषनें में वरी, तिरणने भरस्यां भोग ॥ ६० रीसालूवाक्यं यो दीसे प्रांबा प्रांबली, प्रो दोसे दाडिम द्राष । ए सूडातणां सटू [क] डा, एकेला विचे वाट ॥ ६१ सांमलदेवाक्यं ए नहीं प्रांबा प्रांबली, नहीं दाडिम नहिं द्वाष । नहीं सूडातणा सटूकडा, तारा माथा विचे वाट ॥ ६२ रीसालूवाक्यं ऊभा थाए तो अमी झरे, धरती न झल्ले भार। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003392
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshminarayan Dixit
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1966
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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