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________________ परिशिष्ट १ सांमदेवाक्यं तु परदेसी पंथीया, मरतां न लागे वार ॥ ६३ रीसालुवाक्यं साप ज बाधे सह मरे, वींछी चटपट होय । स्त्री दीठे पुरुष ज मरे, तो कुलमां न जीवे कोय ॥ ६४ वार्ता - त्या कन्या मार्ग लेइ सषी साथें चाली ने घरें श्रावी । त्यारें सालूई कन्याने दृढ जांणी, राजा पासें ग्राव्यो । राजाइ जमाइ ग्राव्यो जांण मेडीई ऊतारयो । सांमलदे धणी पासें गई । रीसालू कमाड देइ बेठो । कंन्या कहे - ए स्यूं छे ? रीसालू कहे - तुमें एहवां रूपालां एतला दिन किम रह्या हस्यो ? ति वास्ते काचूं माटीनूं कोडीयूं पांणी मांहें चारे तरफ वाट करी, पोतानी मेलें दीवो थाए तो तूं सती । त्यारें सांमलदे कहे – हूं धूं धीज नहीं करूं, राजांननी सभा मांहें धीज करसूं । त्यारें प्रभाते राजाननी सभामां प्रावी तिम ज कीधूं । सांमलदे कहे - माहरे ए धणी होय तो दीवो थाजो | त्यारें दीपक थयो । हवे रांणी कहे- तूं समषा, तूं साचो तो प्रापणें प्रीत, नहीं तो आज थी [टू]को छे । त्यारें राजा [नी, ती] पेलाई तो दीवो न थयो । त्यारें सभा हसीजेरीसालू षोटो छे । रीसालू कहे छे - हू किहांई चूको तो नथी पण एतलो थयो छे दूहा - रोसालू षोटो थयो, दीवे ज्योति न होय । राणी रूप नीहालीयो, कलंक ज लगो मोय ॥ ६५ वार्ता - इम कहतां दीवो थयो । सत्यवादी पणाथो वली रीसालू कहे छेदूहा - फूलवती हठीयो ग्रह्यो, धारा ग्रह्यो सोनार । सील सांगलदे पालीयो, राजा भोज जुहार ॥ ९६ वार्ता - ति वारें रातें सजाई भेलां थयां । दूहा - पावल ऊपल घूघरा, हीयडा ऊपर हार । गोरी ऊपर साहिबो, दो कलियनको भार ॥ ६७ [ २०६ Jain Education International वार्ता - तिहां रीसालू छ महिना रही पछें आप सेहर आवे छे। सेहर जेतले कोस दस रह्यो तेतलें रातें तिहां रह्या । रातें वारा फिरतां, चोकींइं चोकी करतां रांणीनें साप डस्यो । रांणी मूई । सवारे पांणीनी भारी भरी रीसालू रांणीनें जगावे तो रांणी मूई दीठी । त्यारें रीसालूई पेट नांषवा मांडी । हवे महादेवने पार्वती कहे छे For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003392
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshminarayan Dixit
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1966
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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