________________
[
२८ ]
सांमा मिळीया सैण, सेरी में सांमा भला। उवे तुमीणा वैण, नहचै निरवाया नहीं ।। ३० ।। पृ० १५४ नागड़ा निरखू देस. एरंड थाणी थपीयो। हंसा गया विदेस, बुगला ही सूं बोलणी ।। ३७ ।। पृ० भामण भूल न बोल, भंवरो केतकीयां रमै । जांण मजीठा चोळ, रंग न छोड़े राजीयो ॥ ३८॥ वण्यो त्रिया को वेस, आवत दीठो कुंवरजी। जातो दुनीया देख, नाटक कर गयो नागजी ॥ ४० ॥ पृ० १५७ नागड़ा सूतो खूटी ताण, बतळायां बोल नहीं । कदेक पड़सी काम, नोहरा करस्यो नागजी ॥ ५८ ।। पृ० १६० कळ मैं को कुंभार, माटी रो मेळो करै। चाक चढ़ावरणहार, कोई नवौ निपावै नागजी ॥ ७७ ॥ पृ० १६२
वात मयाराम दरजी री
-
कथा-सारांश
आबू पर्वत पर गुरु और चेला तपस्या करते थे। गुरु का नाम गंगेव ऋष और चेले का नाम चतुर रिष। तपस्या करते-करते उन्हें तीन युग व्यतीत हो गये। ऐसे तपस्वियों की सेवा-शुश्रुषा करने और ज्ञान-चर्चा सुनने इन्द्राणी स्वयं
आठ अप्सराओं सहित प्रस्तुत हुआ करती थी और कलियुग में गरु-चेले की मंसा वहां रह कर तपस्या करने की नहीं थी। अत: उन्होंने वहां से विदा लेने के पहले इन्द्राणी और अप्सराओं से वर मांगने को कहा, क्योंकि उनकी सेवा से वे अत्यधिक प्रसन्न थे । इन्द्राणी ऐसे पहुंचे हुए ऋषि का पीछा छोड़ने वाली कब थी। उसने यही वर मांगा कि नरपुर में जन्म लेकर आप मुझसे विवाह करें और हम दोनों आनंद का उपभोग करें। वचनों में आबद्ध ऋषि को भांड्यावास ग्राम में दुलहे दरजी के घर मयाराम के रूप में जन्म लेना पड़ा और अलबल (र) नगर में शिवलाल कायस्थ के घर इन्द्राणी ने जसां के रूप में अवतार लिया । पाठों अप्सरायें जसां के पास दासियों के रूप में पहुंच गईं।
__ जब जसां पन्द्रह वर्ष की हुई तो रामबगस सुग्गे के रूप में चेला चतुर ऋष उसके पास पहुंच गया। वह वेदों का ज्ञाता तथा आगे-पीछे की जानने वाला था। शिवलाल कायस्थ सुग्गे की प्रतिभा से बहुत अभिभूत था इसलिए उसने जसां के वर ढूंढ़ने तथा विवाह करने की जिम्मेवारी भी उसी पर छोड़ दी और वह
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org