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स्वयं परदेश चला गया। अब विलंब किस बात का था। जसां से प्रेम-पत्र लिखवा कर वह फौरन भांडियावास मयाराम के पास पहुंचा और मयाराम की स्वीकृति तथा हाथ की मूंदड़ी लेकर जसां के पास लौटा।
मयाराम जसां से विवाह करने के लिये बड़ी सजधज के साथ अलवल (र) नगर पहुंचा। बरात में घोड़ों और बरातियों को साज-सज्जा देखते ही बनती थी। बधाईदार ने ज्योंही जसां को जाकर बधाई दी तो उसे ५०० मोहरें मिलीं। मालकी दासी को जसां ने बरात के सामने भेजा, तथा साथ ही मयाराम के सौन्दर्य का वर्णन करते हुए उसे पहिचानने के लक्षण बताये । फिर मालकी मयाराम के पास पहुंच कर उसे तोरण पर लातो है । उसके स्वागत में कोई ५०० वेश्यायें, भगतों व ढोलनियें गाती हुई उसका स्वागत करती हैं । मयाराम का ठाट-बाट उस समय इन्द्र से कम प्रतीत नहीं होता है। उसका रूप तो कामदेव को भी मात करता है। सभी सखियों ने मयाराम के सौन्दर्य और साज-सज्जा की मुक्त-कंठ से प्रशंसा की। बड़े ही ठाट-बाट के साथ विवाह-संस्कार सम्पन्न हा । दूसरे दिन जसां जब मयाराम के डेरे की ओर चली तो मदमस्त हाथी की सी चाल और उसके श्रृंगार की अनुपम छबि लोग देखते ही रह गये । आधी रात होने पर दोनों रति-क्रीडा का आनंद लेने लगे। बीच-बीच में दासियां ठिठोली करने लगीं ।
दूसरे दिन जब मयाराम वहां से प्रस्थान करने का विचार करने लगे तो जसां के लिए मयाराम का विछोह असह्य हो गया। इतने सुन्दर वर को वह आसानी से किस प्रकार जाने देती । उसने अपनी दासियों की सहायता से शराब के प्यालों की मनुहार ही मनुहार में युवक वर को मदमस्त बना कर उसका जाना स्थगित करवा दिया, फिर भला वर्षा ऋतु में जाना संभव कैसे हो, क्यों कि सामने ही सावण को तीज भी तो पा रही थी, जिसका ललित चित्र मयाराम के सामने जसां ने प्रस्तुत कर आनन्द का उपभोग और अनुकूल मौसम का लोभ देकर उसे भरमा लिया। शराब की मनुहारें निरंतर चलती रहीं।
प्रेम की इन मदमस्त घड़ियों में जब लज्जा और संकोच का निवारण हो गया तो बातों ही बातों में अपने-अपने देश की बड़ाई करते समय दूल्हे-दुल्हन में खटपट हो गई। मयाराम यह कह कर कि ऐसी कई मुंदरियां मुझे उपलब्ध हो सकती हैं, वहां से विदा लेने को तैयार हुअा तब परिस्थिति को बिगड़ते हुए देख कर मालू दासी ने जसां के राशि-राशि सौन्दर्य का वर्णन कलात्मक ढंग से करते हुए 'ऐसी सुन्दरी को त्यागना बुद्धिमानी नहीं है' कहकर प्रेमी युग्म को
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