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________________ परिशिष्ट १ (ख) ।। भ्रष रीसालूरा दूहा लिषते ॥ धिय बे ॥ २ जागंत बे । सालवाहन नलवाहणरा, श्रीपुर नगररा राव बे। पुतां काज ज सेवीया, साधां हंदा पाव बे ॥ १ पींडत पुछणहं चली, थाल भरे नल चावलां । लीयो कटोरो घीव बे, मारे पुत्रके केसर कहै कस्तुरीयां, सुती के सोनां हांदी थालीयां भीत्र वजी के बाहिर बे ।। ३ हड हड दे मुडी हसी, नाई मेरे दाइ बे । एक साल प्रावीयो, जासी सोस कटाय बे ।। ४ हड हड दे मुडी हसी, नाई मेरे दाई बे । एक रोसालु श्रावीयौ, जासी सउ जलाय बे ।। ५ काला हरण उजाडरा, सरवर पांन भड़ंत बे । 1 1 ॥ ६ हठीया पतसा हठ म कर, हठ हठ रमो सिकार । ... -areas जे देषं तुं रूंबडा, तास तथा फल जाय बे । बापे ज Jain Education International 93. है है लछवं... " ... ॥ ६ फेरा फीरे फीरंदड, साह फिरं के चोर बें । के तुं है मैहल [ल ] छवंती गोरीयां, तम कीस हांदी नार । .. - पाव बे ॥ १० " है हैं लछवंती गोरीयां, तेरा कु 1 ... ॥ ७ ... 'बे ॥ ८ 1 .., एक प्रेम चषाय बे ।। ११ 1 "सोर, भुलां मारग बताय बे ॥ १२ ... """ ***, ...विच कर डंडडी, पंथी एथ बैसंत बे ।। १३ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003392
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshminarayan Dixit
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1966
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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