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परिशिष्ट १ ( क )
||६० ।। अथ रोसालू कुमारनी वार्ता लिष्यते ||
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चोप- प्रथमं प्रणमूं श्रीगणेश, विद्यातणो श्राप उपदेश । सालिवाहनपुत्र रोसालू होय, संत-तपते ग्रहीया सोय ॥ १ वहा- बेटा जाया सालिवाहन, धरिया रीसालू नांम । बांभट भट्टनें पूछिया, नवखंड राषे नांम ॥ २ दोनू राजा जुगतिका, दोनू राजा सोज । हरषें दोय सगा हूश्रा, सालिवाहन ने छाजें बेठी मावडी, ग्रासूडां मत पुत्र हुआ सो चलि गया, ऊभी हंसानें सरवर घणा, पुहप घरणा सुमांणसनें मित्र घरणा, कस्तूरीरा गुरण केता, केता नदियांरा वलरणा केता, केता
भोज ॥ ३
पेर ।
मंदिर
घेर ॥ ४
श्राप - तरणे
राजाना लोक कहे है
अत्र महादेव मिल्या परिष्या करे छे ।
महादेव यो रूपें छै
नरां ।
भूप्रां ॥ ७
हरि हरणां थल करहलां, नउ मय तो air विस मोहा थीयां, ए वीसर से दुरबलके बल रांम है, वाड घेत पाय । जननी सुतकू विष दीए, तो सरण कुणपें जाय ॥ ८
भमरेह ।
गुरणेह ॥ ५
चित्र |
मित्र ॥ ६
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कागद में
सुगुणारा
पालो, जगसूं रहो उदासी ।
दया रषो धरम अपना तन ओरका एक ज घडी आधी घडी, भी प्राधी को श्रद्ध ।
जांणे, तो मिले अविनासी ॥ &
हर-जन संग मेला वडो, सुकृत होय तो लद्ध ॥ १०
चातुरकू चातुर मिले, ललि ललि लागो पाय । rea को प्रोच्चरे, तो मांणिक मेलो जाय ॥ ११
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