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________________ १३० ] बात सारी हुसी तो कर देषामसां । तठे उम्रांवां बोलीया - श्रीमाहाराज कुंवार ! श्रमारी बाई सासरा पीहर ल्याया छा जठे आपरी साथेलीयासू मोली; तरे राजारी वडीसी फते कीवी छो; तिण प्रापरी साथैलीयांने माहूरी कुंवरी कहौ छोम्हारो षावंद इसडो तीर वाहवठां (णां ) छा सो रूपरा सात-आठ फल एक तीरसूं बषौ नाष देव छै; इसी जाब म्हे पिण सांभलीयौ छौ, तिरणसूं आपनै तसती हुसी; पण ग्रो प्रापरे मूंहडा ग्रागे प्रांबारो रूष छै तिरै ऐ सात भूंबषारी डाली छे, तिका डाली रह जावे नै भूबषो प्राय पडे । तठे कुंवरजी मनमै विचारीयो देषो दइवां राष्या इरणां उम्रांवां आव बात कही नै कदाचित स नही तो हेल हुसी ! ] 7 दूहा- वीरह विडांणा मेहलथी, साथीडां सीरदार बे । दोरो हुवो दुहेलडी, मिलीयौ इण भरतार बे ॥ २६० सांई बाजी राष बे, तो सूधौ सहु काज बे । पंच पतीजा पां बै, बलि रहै सगली लाज बे ॥ २६१ ८१. वार्त्ता - इसो विचार परमेसरनें समरनें कबाण चढाय ने तीर भू बषा नै बांह्यौ, सौ सात केरीयां जूई-जूई प्राय पडी । बषौ सारा ही उम्रावां पडियौ दिठौ । दूहा - तीर सपल्लल चांपीयो, लागा प्राबा डाल बे । पवारां सूंधोनिक्स, भूंबषो पड्यौ पराल बे ॥ २६२ उमावां साषीधरा, दीठां कैरी भू ब बे I जांण्यो कुंवरी छै सही, कूड नही तिल वात बे ॥ २६३ - ८२. वार्ता - हिवै पंचा सारा ही साषीधर हूवा । सारा ही षमा-षमा केह ने कहे — श्रीमाहाराजकुवार ! श्राप तसती घणी फूरमाई, गुणौ बगसाविजै, दरबार पधारीजै । इतरौ कहीयौ तठे कुंवरजी उम्रांवांरे साथे घोडै असवार हूवा ने कुंवरी चकडोलमे वेसनें दरबाररे महिलां गई । वासैसूं वधाईदार राजा भोजने जाय वधाई दिवी । पधारचा । इसो सुणी राजा बुसी हुआ, परधांनने को-सांमेलारी ताकीदी करो । तदी परधान सारो सहीर, बाजार सोणगारीयो; हाथी, घोडा, कोतल सोणगारचा; नगारा नीसांण फररा सर्व त्यार कीधा । राजा भोज सांमेलो करी कलश वंदावे कुंवरजीनु मांहे लीधा । तदि कह्यो – हूँ तीरसू पाडो तो कुंबाण ले तीर ग. वारता - रांणी कह्यो । रीसालु कहै - श्रा श्रसत्री सुकलीणी छे । राजा समस्तरो बेटो छु । तदि [रांणी] कह्यौ -सात कैरीको कुंबको एक हूं जांणू तो थे रीसालु बरा । तदि सारा लोक देषवा लागा । तदी रोसालु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003392
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshminarayan Dixit
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1966
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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