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सन्यासियों का वर्णन बड़ी चतुराई के साथ किया गया है जो लंबी कथा में प्रायः प्रोत्सुक्य का निर्वाह करने में भी सहायक सिद्ध होता है।
प्रेम-गाथानों में पत्र-लेखन का बड़ा महत्त्व है । अपनी विरह-वेदना का सागर प्रायः प्रेमपाती पर अंकित दोहों की गागर में भरकर भेजने में प्रेमी को बड़ा संतोष होता है । इन पत्रों में प्रायः नायिका अपने प्रेम-विह्वल हृदय की बात ही नहीं करती अपितु अपने हृदय को ही प्रेमी तक पहुंचाने को लालायित रहती है। निश्चित अवधि पर मिलन न होने की स्थिति में प्राणों का मोह छोड़ देने की धमकी उसका अमोघ अस्त्र है, उसका उपयोग भी पूर्ण विश्वास के साथ वह करती है। ___ यद्यपि नायिका की विभिन्न अवस्थानों और हाव-भाव का वर्णन इन कथानों में मिलता है परन्तु वह हिन्दी के रीतिकालीन प्रेमाख्यानों से अलग किस्म का है। शृंगारिक उपकरणों व उसकी अभिव्यक्ति में परिपाटीबद्धता अवश्य लक्षित होती है परन्तु रीतियुक्त नायक-नायिकाओं के सुनिश्चित क्रिया-कलापों के केटलाग से वह सर्वथा भिन्न है। रीतिबद्ध प्रेम को जहाँ शास्त्र ने अपने नियमों में जकड़ लिया है वहां इन गाथाओं का प्रेम सर्वथा मुक्त है। रीतिकाल के अनेकानेक प्रेम-चित्र जहां वासना-जन्य भावनाओं से उत्पन्न कवियों की कल्पना के उपहार हैं वहां इन कथाओं का प्रेम जीवन की वास्तविकताओं के बीच क्रीड़ा करता हुआ दिखाई देता हैं।
कहने की आवश्यकता नहीं कि इस प्रकार का कथा साहित्य तत्कालीन समाज के राग-द्वेष, सौन्दर्य और प्रेम के मापदण्ड, जातीय-व्यवस्था, जीवनआदर्श, यौन सम्बन्ध, मनोविनोद व राजा तथा प्रजा के सम्बन्धों की जानकारी का बड़ा ही उपयोगी साधन है। इन कथाओं में प्रयुक्त काव्यांश कहीं-कहीं उत्कृष्ट कोटि की काव्यकला अपने में लिये हुये है। गद्य और पद्य का यह सुन्दर समन्वय तत्कालीन जीवन की यथार्थता और प्रेमानुरंजित कल्पना के सम्मिश्रण के अनुकूल है, जिसकी व्याप्ति कथाकारों ने इस लोक में ही नहीं, जन्म-जन्मान्तर तक में कर देने का प्रयत्न अपनी कुशल लेखन-शैली के बल पर किया है।
अब यहां सम्पादित प्रत्येक कथा को लेकर संक्षेप में कुछ आवश्यक विचार प्रस्तुत किये जा रहे हैं।
१. वात बगसीराम पुरोहित : हीरां की कथा सारांश
प्रकृति और मानव-सौन्दर्य की सुषमा के आगार उदयपुर पर राणा भीम (१८३४-१८८५) राज्य करता था। उसके राज्य में अनेक कलाओं में
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