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________________ बात रोसालूरी [ १३७ ६२. वार्ता-इण भात रहतां थकां श्रीमाहादेवजीरा प्रतापसू घणा दास दासी वधीयो । चारू ही कानीरा भौमीया, ग्रासीया प्रांणनै चाकर रह्या । नगरी सारी ही आगासू सवाय वसती हुई । घणा विनज-व्यापारसू डांण-जगात धणी प्रावै छै । तिणसू कुवररे षजांनी क्रौडा रूपीयारो हुवौ। कुंमे किनी वातरी नही ।B Cतठे इण विध रहतां थकां वरस पांच वलै हुवा। तठै रातरा पौहरा कुवरजी सूता छ । सूतां मनमै वीचारीयौ जे वनवास ही भोगवीयौ, राज ही भोगवीयौ, पिण घरै गयां विनां विभ्रारी षबर किसी पड़े; तो अवै माईतांसू मीलनौ ने धरतीमै नांम करणौ । इसौ विचारनै आपरा उम्रांवाने प्रभातै सभामै बुलाया; मनसोबा कीया। तठ मोटो माहाजन अकलबादर, तीणनै दीवाणपद देईनै द्वा(धा)रावती नगरी सूपी; भला समसेरबादर रजपूत मूंहडा आगै राषी घणी जाबताई दीधी। हिवै पाप नगारो दिरायनै सवा लाष घोडौ साथै लीयो। __दूहा- दल वादल भेला हुवा, देता नगारां ठोर बे। जांरण भाद्रव गाजीयौ, चढीया वहतां सजोर बे॥ ३२७ ६३. वार्ता-इंण भातसू बहता थकां आपरी नगरीसू कोस एक उपरै प्रांणनै प्राचाचूकडा डेरा कीया । प्रभात राजा समस्तजीनै षबर पडी। मनमै भयभ्रांत हुवा-जे कीणरी फोज है । त, नीजरबाजांने मेलीया । तिकै जायनै षबर पाडी-कैठ जावसी, क्यू पाई छै ? तिका हकीकत कहौ । तठे कोई क उम्रावा बोलीयौ-अरे राईकां ! थाहारा राजानै केहनै इण नगरोरी जाबताने भाई छ । फोज उमीर-सीरदारारी छै। इसा राइके समाचार सूणनै राजाजी। B. यह अंश ख. ग. ङ. में नहीं है। C.-C. चिन्हान्तर्गत गद्य-पद्यांश के स्थान पर ख. ग. ङ. प्रतियों में निम्न गद्यांश ही प्राप्त है ख. कित्तरेके दीने चाल्या थका श्रीपुरनगर नेडा गया। राजा समस्त जाण्यो-कोइ वेरीदल धरती लेवा प्रायो दीसे छे । इसो वीचार राजाए उंबरावानु साहमा मेल्या-पा कोणरी फोज छ, कठे जासी ? इतरामे हलकारा पाया राजा समस्तने अरज कीधीमाहाराज ! रसालु कुमर परणेने प्रावे छे। इसो सुणीने राजा समस्त राजी हुआ। हीवे राजा समस्त सांमेलारी सझ कराय रसालु वर सांमा प्राया। मोती थाल भर वधायो । नरनारी मील मंगल गाया । घणा उछव महोछव हुमा। सर्व लोकांनै मन भाया। यु करतां रसालु राजलोकमे पाया । माता सु मील्या पछे महीला वाषल हुआ । होवे रसालु सुषे रहे छ । तठा पछी पांच रांणी फेर परणीया। रांणीयां संघाते मनवंछीत सुष भोगवे छ । इम करता एकदा राजा समस्त देवलोके पहुता । तरे रसालु घणो धर्म पुन्य करी चंदण अग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003392
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshminarayan Dixit
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1966
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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