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बात रीसालूरी
[ ७७ [कुवरजी इसौ सोणने बोलीया-थे कहो सो परमांण छै । पिण मार एण वातरी षस कोई नई ने वलै कुवरीनी मथै घणा आदमी मुंवा, सौ पा कुवरी माहा पापणी छै; सौ म्है इणरो मूढो देषा नई । इसौ सूणन दासी पाछी जायन रांणीनै हकीकत कही। तठे वले दासीन रांणी कह छै—जा, तु कवरजीन कजैश्रीमाहाराज कुवार ! परणीजो, न आप माथो लेस्यो तीणनै आपने हाथमे काई आवसी ? माहरो राज षराब हूय जासी । श्राप सगै छो, षत्रीवस छो। इतरो अरजै मांहारी मांनो । तठे कुवरजीनै दासो सारा समाचार कहीया। तठे कुवरजी बोल्या-दुरस छ, पिण ईन तो म्हे कोई परणीजा नही नै दुसरी कवरी हव तो परणाय देवो, नही तर मै परा जासा । त? दासी बोली-माराजकुवांर ! दुजी तो वेटी मास दसरी छै, सो वालक छ। तिका था परणावा कूकंर ? त? कुवरजी बोला-मानै दस मासरी डीकरी परणावोजो। म्हारे कौइ अटकाव नही । ]
A तठे दासी सूणने रांणीनै कहौ। तठे रांणी मास दस री कन्यारो व्याव कीनो । घणा कोड कीया। सूसरै जमाइने घणी प्यार वध्यो। हीव कुवरजी दिन २० रह्य सीष मागी । त? राजाजी बौल्या-कूवरजी साहब ! इतरा वेगा पधारो, तिणरो काइ जाब जाणीजै ? तठ कुवरजी कहीयौ-श्रीमाहाराज धीरजै.
[--] ख. ग. घ. प्रतियों में निम्नाङ्कित पाठ है -
ख. तद रसालु कहे-इण हत्यारीरो नाम मत लीयो। इणरे वास्ते घणा पुरस मुना छ । सो नही परणां । तदी दासी कहे- मे तो कन्या परणावारे वासते करता हता। माथो लीयां राजरे हाथे कांइ पावसी ? अर प्रो गुनो माने बगसीस करो पर आप परणो । रसालु कहे-या तो कन्या न परणां । दुजी वे तो परणां । इसो समाचार दासी प्राय रांणीनु कह्यो। रांणी कहे-दुजी कन्या तो मास छरी छ । सो परणे तो परणावा । दासी जाय रसालुने कहो-दुजी कन्या तो मास छरी छै । तदी रसालु कहे उवाहीज परणसां। ___ ग. घ. तदी (घ. तदी रसालु) कह्यो-'कन्या तो नही परणां' ('-' घ. में नहीं है) अणहुँतसरी कन्यारो (घ. ईण हत्यारीको) नाम ल्यो मति । राजाको माथो ल्यावो। तदी (घ. तदी दासी) कह्यौ (घ. कही)-माहाराज ! माथो लीधां कांई हाथमै पावसी ? 'माने गुनो बगसो' ('-' घ. में अप्राप्त है) थे कन्या (घ. राजकोन्या) परणो। तदी (घ. तदी रींसालु) कह्यौ-या तो नही परणूं, ओर कोई होवे (घ. हुवै) तो परचूं। 'तदी रांण्या कह्यो--माहाराज ! मे तो ईणरै वास करता था' ('-' घ. में यह पाठ नहीं है)। तदी रांणी कह्यौ (घ. कयौ)-पोर तो छ मासरी छै (व. और तो मांह सरीषी छै)। . 'तदी रांणी प्रो कहो' ('-' घ. में नहीं है)। तदी रीसालूजी कह्यौ (घ. रसालु कहीयौ) वाहीज (घ. उवाहीज) परणस्यां (घ. परंणसु)।
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