________________
बात बगसीरामजी प्रोहित हीरांकी छप्पै- अब निवाई ऊपरै हीरां दिल प्रोहित ,
महल रंग माणंत सुषद संमारस मोहित । कोक भेद बहू करत चिरत आसण चवरासी, रत विलास अनुराग बदन पर मदन विकासी। कर हावै भाव मन बस करत, बचन विलासत वामकै , माहा मनोरथ सिध मिल, रसिया बगसीरांमक ।। २८५ प्यारी महल प्रजंक पर सपुष सेज फूल पर, मिल सुगंध सुकमार काम लीला प्रकास कर । नव जोबन नत्यान दरस प्रतबिंब दषावत , रसकत बगसीरांम भांम मनमें अति भावत ।। यण प्रकार भुगावत अतुल, धार अधिक सुष धामना , हीरां प्रोहित हितसं, करी संपुरण कामना ।। २८६
बरषा रति बरणन अब बरषा रत घुमत घुमंड घनहर घूमत , धर बरषत जलधार ललत बादल गिर लूंबत । झमक बीज झमलत झपट पर पाय झोलत , . सागर षादर भरै बिमल दादर तट बोलत ॥ बनराय फूल दल विकस, सूर मयोर सुष सहलमैं चत्र मास प्रोहित चतुर, मांणत हीरां महलमें ।। २८७ गिगन मलत घन घोर चपला चमकारुत , सागर नदी समाज मिलत सीतल मारुत। बिस कमांन बेलड़ी मंजरा फुल सुगंध मिल , गिरवर तरवर गहर डहक डंबर ता फल । दल साधक मनो संयोगतां, चत्र मास अधिको चहैत ,
मिल हीरां प्रोहित महलमें, रत विलास निस दिन रहैत ।। २८८ दोहा- चत्र मास नीला चिरत, बीत्यो पेलत बाम । सीतल काल आयौ सरस, संजोगण मिल स्यांम ।। २८९
सीत रति बरणन .. छप्पै- सीतल जल थल सरस पवन सीतल ऊतर पर ,
संजोगण सुष स्यांम होत वृहणी-जन थरहर । नाग षां (पां)न तंबोल गरम ऊषदी मदन गुन , तपत अगन 'नापणी तेल' मरदन चंपक तन ।।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org