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[ ५७ ] विषय
पृष्ठाङ्क ४. रोसालू को अपने गोपनीय रक्षण का कारण ज्ञात होना, उसका पण्डित पर
क्रुद्ध हो कर गुरज का प्रहार करना, राजा समस्त द्वारा रीसालू को १२ वर्ष तक देश से निष्कासित करना।
६४-६८ ५. रोसालू का गोरखनाथजी के आशीर्वाद से प्राप्त पासों द्वारा जूवे में पराजित
अगरजीत राजा की दश मास की (दूधमुंही) बच्ची के साथ विवाह कर विदा होना।
६९-७८ ६. रीसालू द्वारा कस्तूरी मग, सूवा तथा मैना को पकड़ना, उस का 'स्योगवास'
गांव से गुजर कर द्वारका नगरी में पहुंचना तथा वहाँ राक्षस को मार कर बस जाना।
७६-८२ ७. रीसालू की रानी के साथ 'जलाल पट्टण' के पातसाह हठमल का प्रेम होना,
सूवा-मैना द्वारा रानी को समझाना तथा वन में जाकर अवैध सम्बन्ध की
रीसालू को जानकारी देना, रोसालू द्वारा युद्ध में हठमल का हनन करना । ८३-१०१ ८. रोसालू के समक्ष स्त्रीवियोगी एक योगी की पुकार, रीसालू द्वारा अपनी
पत्नी (रानी) को उसे दान में देकर द्वारका नगरी से कूच करना तथा रानी का योगी को चकमा देकर हठमल के शव के साथ जल जाना। १०२-११० रीसालू का राजा मान की नगरी पाणंदपुर में पहुंचना, सरोवर से पानी का कलस भरती हुई राजकुमारी (पत्नी) से नोंक-झोंक होना, राजा मान से मिलाप एवं वार्तालाप, रीसालू को सुनार के साथ रानी के प्रेमसंबंध की जानकारी प्राप्त होना, रीसालू द्वारा सुनार को अपनी रानी (पत्नी) का पान कर वहाँ से प्रस्थान करना।
१२७-१३४ १० रीसालू का धारा-नगर (उज्जैन) पहुंचना, राजा भोज की पतिवियुक्ता
राजकुमारी का चिता में जल कर मरजाने का निश्चय करना; रीसालू द्वारा अपना सप्रमाण परिचय देकर राजकुमारी (पत्नी) के प्राण बचाना तथा पति-पत्नी द्वारा राजलोक में प्राकर हर्षोल्लास के साथ सुख-विलास करना।
१२७-१३४ ११ रोसालू का उज्जेण छोड़ कर उजड़ी हुई धारावती में ५ वर्ष तक रहना,
महादेवजी की कृपा से वसती को फिर से प्राबाद करना, रतनसिंह-नामक पुत्र का जन्म, रीसालू का अकलबादर दीवाण को धारावती का कार्यभार सौंप कर अपने पिता समस्त राजा की नगरी श्रीपुर की ओर अपनी सेना के साथ प्रस्थान ।
१३५-१३७ १२ राजा समस्त को किसी अन्य राजा के आक्रमण का सन्देह होना, प्रधान
द्वारा पता लगा कर रीसालू के आने की सूचना देना, राजा समस्त द्वारा अपने पुत्र रीसालू की सज-धज के साथ अगवानी तथा पिता-पुत्र-बन्धु-बान्धवों का मिलन एवं वार्ता का उपसंहार ।
१३५-१३७
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