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________________ १०६ ] बात रीसालूरी दहा- जावो रांणी विडांणोया, जोगी लार जगत बे। थे मंदा सोर गयो हिवै, पर वणीयां गत चित्त बे ॥ १८०' ४८. वार्ता- इसो कहिन जोगीने सीष दीवी। अबे मृगला ने सूवा ने मेनां न सर्वने साथ लेने कुंवरजी असवार हवा सेहर बारे अाया। त? संवे विचारीयोंकुंवरजी सह तो आज नगर छोडीयौ ने कठेइ क अाघा जावसी । तठे सूवो केह छैदूहा- अहो रीसालू कुंवरजी, क्यूं छोड्या रूडा घांम बे। किण दिस मजल करावस्यौ, किण पूर केहने गांम बै ।। १८१' कुंवरजीवाक्यं सूवा किण देशे चलां, सूरां किसा विदेस बे । जिहां अपणां अन्न-पाणीया, जिहां करस्यां पर सेव(वेस)बे ॥ १८२५ ४६. वार्ता- तठे सूवेजी बोलीयो-माहाराजा कुंवर ! आप घडी एक पंग थंभजो, सो मेंनांने लेने पाउं । तठे कुंवरजी बोलीया-मेंनां तो जाती रही थी, सो अबे थे कठासू ल्यावज्यो ? तरे वासली हकीकत सूवै सारी कही। त? कुंवरजी जांणीयो-जे सूवो वडो पर उपगारी छ । राणीने जीवती राषो; नही तो हु आ वात सुंणतो तो रांणीने मार नांषतो । पिण स्यावास इंण पंषोरी बुद्ध में । दूहा- उत्तम जीव हुवे जिके, जिण तिणसूं उपगार थे। करतां न जाणे हांण बे, राषे सूष पर कार बे ॥ १८३० ५०. वार्ता- इसो विचारने कंवरजी बोलीया-जे सवाजी मेंनांने किण तरे ल्यावस्यौ; हुं साथे हि चालू ; पीजरामें लेने पाघा चालस्यां। इसो कहीने कुंवरजीने सूवो माहादेवजीरे देहरे ले गयो। आगे कुंवरजी माहादेवजीरो दरसण कीयौ, पूजा कीवी, अरक पूफ घणा चढाया, दुपद कीया, सूत कीवी। पछे मेंनां में सूवाने पीजरामे घालने कुंवर आघा चालीया ।' १. यह दूहा ख. ग. घ. प्रतियों में नहीं है। २. ४८वीं वार्ता के स्थान पर ख. ग. घ, प्रतियोंमें निम्न वाक्यांश ही उपलब्ध हैं ख. रसालु घोडे असवार होय आगे चाल्या । मृग, सुबटो साथै छ। राजा मानरी देस सारु षडीया। ग. पर्छ रीसालु प्रसवार होय नै मृगने साथ लेई परो गयो। घ. सवेरै छोडे परी रसाल परा चाल्या । ३. ४. ५. ६. ७. ८. गद्य-पद्यात्मक अंश ख. ग. घ. में नहीं है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003392
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshminarayan Dixit
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1966
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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