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बात सालूरी
भर भर नयंरण
,
सीम जांगो आापरी, घर तुंमारा
जोगी बाक्यं
दूहा- जोगीडा रसभोगीया'
राजा मेरी वालही, मो प्यारी मन मांह बे ।
बलै न मूक एहवो मिलै, सूंदर रूप सरांह बे ॥। १७६१° मे स्त्री विन सूनडा, जीवडा जात है दोड बे ।
मांडाई जोगी ले गयो, मांहरां जीवरी मोर बे ॥ १७७११
मत रोय बे ।
जोय बे ॥ १७५
में मरहूं त्रिस कारणे, करीये मांहरी सार बे । तेरे श्रागे पूकारीया, सूरणीय मांहरी पूकार बे ।। १७८१२
४६. वार्ता - तठे कुंवरजी मनमै वीचारीयौ जे रांणीने इण जोगीने परी देउं तो पाप कटै । इस मनमे विचार करने जोगिने कहै छै
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हा १४- प्राय सजोगी ध्यानमै रहोये" जटा वनाय
माहरी परणी प्रेमकी, चाढी ताहरै पाय२० बे ।। १७६ ४७. वार्ता - इसो सूण, जोगी राजी हुयनै केह छै- तेरा परमेश्वर भला करीयो; मेरा जीव घूस कोया । तुंमारी रांणी पाउं जहां मेरे किस वातकी कुमी है । तठे कुंवरजी ले ने पांणीरी [झा] रीसूं संकलप कीधी, नै रांणीने मैहलांसू काढ नै जोगीने परी दीवी ने कहै छै २५.
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बे ।
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छे ? तरे जोगी कहे - माहरी स्त्री मने मोकसे हुनो जांणी मने छोड नोर जोगी लारे गई। ती वास्छु । रसालुवाक्यं - ग. गोरष जगायो । तदि रोसालू कांई कहैघ. प्रति में इस वार्ता का कुछ भी अंश लिखित नहीं है । १. ख. रसभोगीडा । २. ख. नेण । ३. ख. म. । ४, ५. ६. ख. श्रीया न होवे । ७. ख हमारा । ८. ग. और घ. प्रति में यह हा नहीं है । ६ १० ११ १२ सन्दर्भ एवं ब्रूहे ख. ग. घ. में १३. ४६वीं वार्ताका श्रंश ग घ प्रतियों में प्रप्राप्त है लिखित है
प्राप्त हैं । तथा ख. प्रतिमें इस प्रकार
वारता - रसालु जोगीनु रोवतो देषी मनमा बीचारीयो - श्रा प्रस्त्री इण जोगीने द्य तो भली । रसालुवाक्यं । १४. ख. दुहो । १५. ख. रहो २ । ग. रहि । १६. ख. बनाव । १७. ख. माहरी स्त्री परणी जीके । ग. मांहरी अस्त्री परणी । १८. ग. चोहडी । १६. ख. ग. तुमारे। २०. घ. यह ही नहीं है । २१. ४७वीं वार्ता घ. प्रतिमें नहीं है किन्तु ख. ग. प्रतियों में इसका रूपान्तर इस प्रकार हैस्व. वारता - रसालु एसो कहि योगीने स्त्री-दांन दीधो । हाथ पांणी घालीयो; श्रीकृष्णा पुन्य कीधो । जोगी बहुत राजी हुश्रो ।
ग. वारता - तदि रोसालू श्रसत्री दीधी । तदि जोगी हुयो । जोगीरा हाथ में पांणी
क्यो; रांणीनं परं बीधी ।
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