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बात रीसालूरी दूहा- देषो हुती दस मासनी, पाली किरण विध पोष बे।
हिव पर घर मंडप करी, अस्त्रीजातरी प्रोष बे॥ १७० केहनी अस्त्री न जांगज्यौ, कुडो नेह रचंत बे।। पूठ पराई नारीयां, न धरे एक ही कंत बे ॥ १७१२ सासरीया पीहर तरणा, कुलन करती षराब बे।
परपूरूषां मनडो रंजे, सकल गमावे आब बे ॥ १७२३ ४४ वार्ता-इण भांतसू कुवरजी चितवना करे छे। इतरे रात गई देषने, सारी जाबता करने, रांगोने मेहलांमै जडनै दूजै मेहलांमे सूता। हिरण चरवा गयो । सूत्रो मेंणा पास गयो । जतन-जाबता साराहीरी हुई। हिवे परभात हुवो। त? कोई क जोगो, अस्त्रीरो विजोग हुवो, नगर देषने पुकारवा
आयो। आगे नगर कठेई क सूनो, कठेई क वस्ती देषने कोणही कने पूछीयोरे भइया ! इ नगरका राव कहां है ? तठे आदमी बोलीयो-अहो जोगीजी माहाराज ! म्हे तो राजारा मेहलांसू घरणा पागलै रहां छां। ए साहमा सतभोमीया आवास सोनेरा कलस चिलकै, तिके रावरी जायगा छ। म्हे तो रावजीने कदेई देषीया न छै । थाहरें काम छै तो थे जावौ। तठे अतीत रावजी जायगा पायं । सारी ही सूनी दीठी। दूहा- नहीं घोडा रथ उंटीयां, हाथी ने सूषपाल बे।
चाकर-बाबर को नही, ए नृप केहा हवाल बे ।। १७३५ इम चितवता प्रावीयो, रीसालू मेहला हेठ बे।
घोडो देष्यौ हिरणेने, वसती जारणी नेट बे। १७४६ ४५. वार्ता-तठे मेहलां है, अतीत उभो रेहनै पूकार कीवी-अरे बाबा । मेरा धणी कोउं नांहि है, तेरे पास आया हं; सो मेरो वाहर करीयौ माहाराज ! मेरी अस्त्रीके तांई मांटी पणें एक जोगी लेगया; सो मेरी दिराय देवो। ज्यू मेरा जीव मोरो हुवै; तेरे तांइ वडा पूंन्य हुवेगा। इसी पूकार कीवी। त, रीसालसूणने हेठो उतरीयो; जोगी पास आय हकीकत पूछी। तठे जोगी रोयवा लागो । तरे रीसाल कहै--.
१.२. ३. तीनों दूहे ख. ग. घ. प्रतियों में नहीं हैं। ४. ४४वीं वार्ता का अंश ख. ग. घ. में निम्न वाक्यों में ही लिखित हैख. इतरे प्रभात हुओ। एक अतीत मेहलां नीचे प्राय उभो रह्यो। ग. तवी सवार हुवो। एक अतीत म्हला नीचे पाये ऊभो रह्यो। घ. में यह अंश बिलकुल ही नहीं है।
५. ६. दोनों दूहे ख. ग. घ. में नहीं हैं। ७. ४५वीं वार्ता के स्थान में निम्न वाक्य ही ख. ग. प्रतियों में उपलब्ध है-ख. वीलाप करतो रोवे छे । तरे रसालु पुछयो-क्यु रोवे
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