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बात नागजी-नागवन्तीरी
[ १५७ सोरठो- नागड़ा निरखु देस, एरंड थाणों थपीयो। हंसा गया विदेस, बुगलहिोसु बोलणों॥ ३७
परमलदेजीवाक्यम्'भामरण भूल न बोल, भंवरो केतकीयां रमैं ।
जांण मजीठां चोल, रंग न छोड़े राजीयो ॥ ३८ २३. वारता- अबै परमलदेजी कहै छै–नागजी ! थे मोह' कनै उभा रहयौ नैं जे नागवंती कनै जावो तो या डावड़ी लूण उतारै छै, तठे जायनै थे थाळी उरी लेने लूण उतारण लागज्यो । तर नागजी जायनै थाळ उरो लीयो नै नागवंती ऊपर लूण उतारण लागो । नै अांख्या प्रांसुवे भरांणी में आंसु पड़ीयो सु नागवंती रै खवै लागो । तरै नागवंती ऊंचो जोयो, सं देखे तो नागजी छै। तरै नागवंती कह्यौ-राज ! वागमें रहज्यौ; हूँ हथळे वो छुड़ायनै तुरत आq छु ।
नागवंतीवाक्यं सोरठा- टिपा टिप'° टपीयांह, विण वादल बुछ टीयां'।
आंख्यां प्राभ थयांह, नेह तुमीण नागजी ! ॥ ३६
__तर सहेल्यां कह्यौं १२ --- सोरठा- वण्यो त्रिया को 3 वेस, आवत दीठो कुवरजी।
जातो दुनीया देख, नाटक कर गयो नागजी ।। ४० २४. वारता- हमै नागजी तो वाग मांहे४ गयो। उठे हीज खेत मैं वाग छै, तिणमैं मालो थो, तिण ऊपर नागजी जाय बैठो नै लारै नागवंती चवरी मांहे १५ सुं ऊठी नै मानै कह्यौ-मांहरो तो माथो दूखै छै सुहतो रंगसालमैं १६ जाय सोऊं छु, मोनै कोई वतलाज्यो मती। इसों कहनै१७ पोसाक पैहरियां थकां ईज बागनु चाली सु आधी रातरै समें एकली'८ जावै छै । सु एक [गुणवंत बुधवंत'६] माहातमारी पोसाल छ, तिणरै आगै हुय नीकळी । [तारै चेलौ गुरुजी नुं कहै छै]२०
१. स्व. प्रति में नहीं। २. ख. म। ३. ख. भमै। ४. ख. मजीठो। ५. ख. मो। ६. ख. रहो। ७. ख. उ वा। ८. ख. लाग जाज्यो। ६. ख. प्रतिमें नहीं। १०. ख. टप । ११. ख. विछुटीयां । १२. ख. इतरी वात करने नागजी वाग जावण लागो तरै वले सहेली कहयौ । १३. ख. के। १४. ख. में। १५. ख. बैठी थी। १६. ख. रंग महल । १७. ख. कहीन । १८. ख. इकेली चाली । १६. [-] ख. प्रतिमें नहीं है । २०. [-] ख. प्रतिमें नहीं है।
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