SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 243
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७४ ] बात दरजी मयारामरी दुहौ- के भगतरण के कंचणी, पातर ढौलण पूर। गावै नटवा गायणी, हुसी' म्यार हजूर ॥ ६० १५. वात (द्वावैत)- किसतूरी, चंपकली, लवगां, लाली, चंदू, चमनू, चोकली, मालू ऐ आठ ही अपच (छ) रां गावै बजावै छै; म्यारामजीनै रीझावै छै । महीना बार होय गया छै; म्यारांमजी मैलांमै रत होय रहा छ । पाचौ (छौ) आसाढ मास आयौ छै; अाभौ वादलां चा (छा) यौ छै जद ब्रामण लाधै दुहौ लष मेलीयौ छै; म्यारांमजी हाथ झेलीयौ छ । - दुहौ- जल वूठा थल रेलीया, वसधा नील वेस। मांगौ सीषां म्यारजी, देषां मुरधर देस ॥ ६१ १६. वारता- म्यारामजी मारवाड प्रावणरौ मतौ कीधौ; तंबू गुड़दावणरौ हुकम दीधौ। भार वरदारी आगै चलाइ छै; घोडां पर साकतां झलाई छ। बेलीये कमरां बांधी छै; पाचा (छा) पधारणकी सुरत सांधी छै । म्यारांम ऊठणकी धारी सै; जसांक मरणकी त्यारी छ । कुवरजी राषीया नही रहै। छै; जद मालूडी दोय दुहा कहै छदुहां- म्याराजी ! थे मुरधरा, वालम जाय वसाह । आप वहोगी एक दन, जोवै नहीं जसाह ।। ६२ जसांवायक | दासी कूण जीवै दिवस, घडी न जीव एक । पल-पल जीवां म्यारजी, दिल सुध थांनै देक ॥ ६३ __ मालवायकम्यारा ! पासी मोहकी, आची नांषी पाय । पहला हु होज पांतरी, लाई महल बुलाय ॥ ६४ म्यारा! जासो मुरधरा, चो(छो) ड र जसांनै चै(छ)ल । लाडा थां वण लागसी, मानै बारां मैल ॥ ६५ अलवल (र) रहणौ प्राप, थेटु वचना थापीयो । मुरधर जांणी माप, मन सुध करजै म्यारजी ! ॥ ६६ ___मयारांमवायकमुरधर जोवण मालकी,त्रा (प्रा) सां ची ( छी)णी जासांह। श्रावण' तीजां ऊपरै, आसां तो पासांह ॥ ६७ १. ख. हंसी। २. ख. बूठा। ३. ख. तरदारी। ४. ख. सूरत । ५. ख. छै । ६. ख. रही। ७. ख. प्राछी। ८. ख. हुडीज। ६. ख. प्रावण । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003392
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshminarayan Dixit
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1966
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy