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बात नागजी-नागवन्तीरी सोरठा- सेवा सेहतडांह', मानव काय मांनै नहीं।
पाथर पूजतडांह, निरफल थई हो नागजी ॥ ५५ सूतौ सवड घरेह, विव' पिछोड़े पिंडरा।
सादो साद न देह, 'प्रावि वले प्रो' नागजी ! ॥ ५६ ३१. वारता- अबै नागवंती घणा खाला-वाहला उलांघती जावै छ। पाहड़ांमै सीह गाज रह्या छै; ४ बादळा झुक र ह्या छै; बीजां झबक रह्या छै; मोर कुहका करै छै; रात महाभयंकर वण रही छै; मेह छोटी बूंदां पड रह्यो छ, पवन पिण बाजै छै; तिण समै नागवंती सनेहरी बांधी थकी घणां दुखांसू माला तांई आय पोहती नै प्रागै नागजी माल जाय बैठो थो सु नागवंतीरी घणी बाट जोई, पिण आई नहीं तरै विरहरै मारीयै कलेजारी कटारी मार सुय रह्यो । तिसं नागवंती आई । मालै चढी देखै तो नागजी सूतो छ, तरै कनै जाय बैठी नै हो कहै छैदूहा- नागड़ा नींद निवार, हूँ पाई हेजालुई।
ऊठो राजकंवार, नींद निवारो नागजी ॥ ५७ नागड़ा सूतो खूटी तांण, बतलायां बोल नहीं।
कदेक पड़सी काम, नोहरा करस्यो नागजो ॥ ५८५ ३२. वारता- इसो कहिन पछेवडो उपरासू परो कीयो, देखे तो कटारी कालिजै थिरक रही छै सु देखनै नागवंती कहै छैसोरठा- कटारी कुनार, लोहाली लाजी नहीं ।
प्राजूणी अधरात, नागण गिल बैठी नागजी ॥ ५६ दूहा- जा जोबन अर जीव जा, जा पारणेचा नेण ।
नागो सयण गमाय कर, रही किसा सुख लैरण ।। ६०
१. ख. सेवतडांह। २. ख. पीब । ३. '_' ख. अाज निहेजो। ४. ख. प्रतिमें इतना विशेष है। - 'पाणीरा खंडताल पड़ रह्या छ, निस अंधारी रात छ, दादुर सोर कर रह्या छ बीजळियारा भबतकार होय रह्या छ, मोर भिंगोर कर रह्मा छ ।' ५. ख. यह सोरठा 'ख' प्रतिमें नहीं है । ६. ख. हूं निगलज । ७. ख. प्रतिमें निम्न सोरठा विशेष है
कटारी कुनारि, लोहारी लाजी नहीं । नागतणे घट मांहि, बाढा नींब ही भली ।। बाला बिलबिलताह, ऊतर को प्रायो नहीं। कदे काम पडीयांह, निहुरा करस्यो नागजी ।।
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