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________________ २५० ] কবির। सेवा सेहतड़ाह, मांना काम माने नहीं। पाथर पूजतडाह, निरफल गई हो नागनी । १६०-५५ सो कोसां सजन सै, बस कोसा हुवे भार। तो नारी तेहन भूर, पोउरी न जाणे पूकार ।। -१९८-२४२ सो वारू किण विष सहै, ज्वारी कारबात। -११-१२६ सोल परसरी बीजोगणी, निठ मोल्यो भरतार। हस्या न बोल्या हे मखी, माइयो लेष पार ।। --१२२-२६४ हठीया रावत धाकड़ा, तो विण रन विहाय । तेज पराकम ताहरी, सो हिव कागा षाय ॥-१०७-१८६ हरिया हुयजो बालमा, ज्यू पाडी के सिंग (साग)। मो नगुणीके कारणे, करक वेसांच्या काय ॥-१०९-१८७ हरीया बागांरा राणवी, फूला हंवा हार। तो तो छेती बहु पड़ी, फूडे इण संसार ॥ १०८-१८६ हीरण भला के हर भला, सुकन भला के साम । उठोर अरजुन बांगल्यो, सीष करे श्रीराम बे।। -७०.१० हीरां चाहै छैल चित, जोबन हंदो जोर। किरणालो चाहं कमल, चाहे चंद चकोर ॥-६-४३ हीरां मद प्रातर हुई, चित प्रीतम की चाह ।। विषधर ज्युं चंदन बिमां, दिल को मिट न वाह ।। -६-४२ हे विधनां तो सु कहूं, एक परज सुण लेत। धोछडण अंक'ज मेट कर, मिलबैको लिख देत ॥ -१५०-१० होणहार सो बुध उपजे, भवोतब्य किण ही न हाप । तेरा नाम है हठमला, पाम्रो कर मूझ साय बे॥ -८७-२३ होणहार सो नही मिट, लेष लिष्या छठी रात थे। भलो बूरो सहूं माहरो, करसी विधाता मात बे॥ -७५-६६ होणहार सो हो'ज हवी, स्याणपथी क्या होय बे। राजा कोपे भी भरयो, परजण सको कोम बे॥ -६८-५२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003392
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshminarayan Dixit
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1966
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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