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परिशिष्ट ३
[ २५० सासरीया पीहर तणा, कुलनं करती षराब बे। पर पुरुषो मनडो रंजे, सकल गांवे प्राब बे।। -१०४.१७२ साहिब तो सूता भला, करडी वांगी तांण। षण नही लीधी नीवड़ी, ढीला हुवा संधाण | -१२२.२६२ सांई बाजी राष, तो सूधौ सहु काज । पंच पतीजो पांमै बे, बलि रहे सगली लाज ।। -१३०-२६१ साई साजन प्रेमका, धण दीधा छोटकाय । परषा रुतरी रातडी, दुष म दई बिताय ।। -१२२-२६३ साप छोडी कांचली, भीत्यां छोड्यो लेव ।। रोसालू छोडी गोरडी, मन भावं सो लेव। -१२५.२७७ सिधावो नै सिष करो, पूरो मनरी पास। तुम जीवको जाj नही, मो जीव छ तुम पास ।। -१५१.१५ . सिसक सिसक मर-मर जीवे, ऊठत कराह कराह ।। नयण बांण घायल कोया, प्रोषद मूल न थाय ।। -१५२-२० . सिंगालो भरि पोलणी, जिण कुल एक न थाय । तास पूरांणी पाड ज्यू, दिन-दिन माथे पाय ।। --५२-७ सीह तणा जेवा वाछडा, किम बंधीया रहै बंध बे। होणहार सो होयसी, विधना कामना अंध बे॥ -६५.४४ सुण बडारण केसरी, कथन पुराण कहत । लछण बाद लुगाईयां, प्रकलि पछ ऊपजंत ।। -४८-३७३ सुंग बोरा बैनी कहै, कुलवंती ते होय । त्रीया - चरित्र नांण नही, जो प्रावै सूर-ईद्र ।। -१४१-६६ सुण हो साहिब हठमला, सूरी हंदा काम बे। कायर षडग न बायसी, रंकण दैसी दाम बे।। ---६१-११८ सूकूलीणी नारी तिका, पति संग रहे अछेह । जीवतडां नहि बोसरे, न वलगाई नेह ।। -१३५-३१० सूती सहै सहेलिया, गहरी नीद गरद । दरद नही छै दूसरा, दुई जिका दरद ।। -६-४६ (नागड़ा) सूतो खूटी तांण, बतलायां बोल नहीं । कक पडसी काम, नोहरा करस्यो नागजी ! ॥ -१६०-५८ सूतो सवड घरेह, विव पिछोडो पिंडरा। सादो साद न देह, प्रावि पले पो नागजी ! -१६०-५६ सूवा किण देसे चला, सूरां किसा विदेस । जिहां अपणो अंन्नपाणीया, जिहां करस्यां परवेस ।। -१०६-१८० सेल भलूका कर रह्यो, माठू(स्)डा घूमंत । मावो सखी सहेलड़ा, प्राज मिलाऊं कंत ।। -१५३.२८
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