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________________ परिशिष्ट ३ [ २४७ घणा दोनारी प्रीतडी, कोम मुझ छांडी जाय बे। रूडा राजिद परषज्यो, जीवू ज्यां लग काय बे॥-८३-८७ घणी सासती नारी नहीं, सेणा सहिल अपार । प्रेम गहैली सेंगने, प्रापं तन-धन सार ।। -११८-२४४ चकोर चाहे चंदकू, मोर चहै घण मंड। -२३-१९२ चख सिर खत अदभुत जतन, बधक वैद निज हत्थ । उर उरोज भुज प्रधर रस, सेक पिंड पर पत्थ ॥ -१५२-२२ चसम म मीच -१८१-१३२ चाल[क] हीरां चंदसी, केत राहा सो कंथ । -४.३१ चाल विलूबी इधक चित, वेल तरोवत चांण । लपटावो गल लाइलो, रसिया प्रोहित रांण ॥ -४८-३७१ चुडलो चोरा (चीरा) एह, मोल मुहंगे प्राणीयो। नाखूनी झाडेह, भव पैला सुं पाइयो ।। --१६२-७६ चेला पुसतक झलकरी, कहा पूछत है वात । इण नगरी की डगर मैं, एक प्राक्त एक जात ॥ - १५८-४४ छटी (ठी) वैरण रात -१७८-८७ छोटो केहर बोहत्त गुण, मिल गयंदा माण। लोहड बडाइ नां कर, नरा नखत्त प्रमाण ।। -१४७.३ जगमें नारी रूवडि, वसत करी जगनाथ । पिण साचे मन चालबे, तो पिउ थाय सूं नाथ ॥ -~१३४-३१५ जतीयां सतीयां जोगीयां, बक-फाड ब (ब)ठारां। -१७२-नी. जलज्यो पासा पेलणा, जलज्यो पेलणहार । दस मासरी डोकरी, ले गयो कुवर रसार (ल)।-७८-७२ जल बूठा थल रेलीया, घसषा नीले वेस । १७४-६१ जाग नह मांसू जसां, वरण थारो वौद । १८१-१२५ जाचक जै जै बोलीया, मेह प्रागम जिम मोर वे। यानं करि राजी किया, तोरण बांध्या तोर बे।। -६१-२४ जा जोबन पर जीवजा, जा पांणेचा नेण। नागो सयण गमाय कर, रही किसा सुख लेग । -१६०-६० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003392
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshminarayan Dixit
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1966
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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