SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 318
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परिशिष्ट ३ [ २४९ डूंगर केरा. बावला, अोछा तणे सनेह । वहता है उतावला, झटक देखावै चेह | -१६१-६७ ढोल दडूक तन वहै, गेहरीया नाचत । चालो सखी सहेलड़ा, कठे न दोसे कंत ॥ -१५३-२७ ढोल धडक तन दहै, विरहीणी सतीया होय । पीउ मोलामो तो मील, तो किम दुषीयो कोय ।। -१२७-२८४ तण पुल रमसा तीज, १७९-१०४ तल गुंदल निलज उपरे, नीर निरमल होय । टुक पोवहो रीमालूवा, नोरमल नोर न होय ॥ --१२५.२७६ तास तीषा लोयणा, प्रोस (पर) चंगी वेणाह (नणांह)। धार विछटी घर गई, नर चढियो नैणांह ॥ -१२४.२७३ तीजी वरण तीज, १७८-८६ तुररे छोगे चांकीया, झलंब रहै प्रठ जाम । भीनं रंग अलीयो भमर, मारपीगर म्याराम ॥ -१६८-३५ तू होरावल होर, मोट सूता मिलसी घणा । तू पाटण पटचीर, नारी - कुंजर नागजी ।। -१६१-६८ ते नारी गढ - सूरड़ी, होवै जगमै हरांम बे। स्यूं ए रीसालूरी गोरडी, हठमलसू हित काम बे। -६२-१३० तेहगे वैरी तेरमो, जोवन चढीयो जोर ॥ -१७८.६१ तो सरसी नारी तणा, वेल तणा मन खेल। प्राण तणा पासा ढल्या, मेंमत कीषा मेल ॥ -११०-२०७ थारो पीरो बहुबली, तीम प्रजण-बांण । रयणी वात बहू गई, ईण बोध राता रेण ॥ -१४२-७३ दईवाधीन लिष्या जके, अंकण भिसले सीस बे। जेसा दुष-सूष सीरजीया, जेसा-जेसा लहै नर वीस वे ॥-१०७-१८४ दल चावल भेला हुवा, देतां नगारां ठोर । जाण भाद्रव गाजीयो, चढीया यहां सजोर ।। -१३७-३२७ वसमौ वैरी दीबलो, १७८-८६ दारूको पी धल (धण)वर्ष, छकी प्रण सारू । -१८१-१२८ दुलही बनड़ो वेषतां, ऊलही उर बिच प्राग। संगम वेषो साहिबों, कोनों हंसर काग ।। -४.२६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003392
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshminarayan Dixit
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1966
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy